प्राचीन भारत में सामाजिक परिवर्तन | Prachin Bharat Mein Samajik Parivartan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3. में उभरी एक नई शक्ति के रूप में हर्ष ने किया जिन्होंने 40 वर्षों तक गुप्त शासकों की भाँति पुन एकता स्थापित करने का प्रयास किया यद्यपि वह हिमालय और विन्ध्यपर्वत से आगे कभी नहीं बढ़ सका पर वह कितना प्रभावशाली था इसका पता इस बात से चलता है कि . कामरूप का भास्कर वर्मा तथा. बल्लभी के. धरुवसेन जैसे शक्तिशाली शासक उसकी सभा में आते थे। जालन्धर के शासक आदित्य. को उसने यान-च्वांग का. अंगरक्षक बनाकर सीमा पर भेजा था। इसके अतिरिक्त उसने काश्मीर के शासक को बुद्ध के यादगार दांत देने के लिये. विवश किया। हर्ष ने अपनी योग्यता के बल. पर ही उत्तर भारत के एक बडे भाग पर अपना राज्य स्थापित किया और साथ ही गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात उत्पन्न अराजकता. व अव्यवस्था का अन्त करके देश की सॉस्कुतिक उन्नति का भी प्रयास किया जिसके कारण उसकी तुलना अशोक जैसे महान शासक से की जाती हे।? मरना ः इसके साथ हर ये भी सत्य है कि वह हूर्णों की बढ़ती शक्ति और भारत में प्रवेश कर रही अन्य जंगली जातियों से अपने साम्राज्य को सम्पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं कर सका। इसके अतिरिक्त गुप्तवंश के समान सुदृढ़ कठोर प्रशासन भी अपने साम्राज्य को नहीं प्रदान कर सका। 646 ई0 में हर्ष की मृत्यु के उपरान्त उत्तर भारत में पुन राजनीतिक विकेन्द्रीकरण . और विभाजनपरक शक्तियां सक्रिय हो गयी। 720 ई0 में हम कन्नौज में यशोवर्मन न द ड्ँ 2 द] लि को. शासन कंरते हुये पाते हैं जिसकी दिग्विजय का वर्णन उसके ं राजकवि वाकपति जि ही द्वारा बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया गया है। कल्हण के विवरण के अनुसार . कश्मीर रे ल्‍ ं में एक. ललितादित्य नामक शासक उभर कर सामने आता है. जिसने यशोवर्मन के साथ मिलकर तुर्क और अरब आक्रमणकारियों का बड़ी बहादुरी के साथ . सामना किया? परन्तु शीघ्र ही. ललितादित्य के पतन के कारण कश्मीर पर . कुछ. अन्य _ राजवंशों का अधिकार हो गया। उपर्युक्त राजवंशों का इतिहास जानने के साथ-साथ नेपाल कामरूप बंगाल उड़ीसा बल्लभी तथा राजस्थान पर शासन कर रहे राजवंशों की. जानकारी प्राप्त करना भी अत्यन्त आवश्यक है। जिस समय. भारतीय राजनीतिक क्षितिज में... कल




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