महाभारत में प्रतिबिम्बित संस्कृति का समीक्षात्मक अध्ययन | Mahabharat May Pratibimbit Sanskriti Ka Samichatyamak Adahayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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52222. महाभारत के प्रणेता काल, एवं ऐतिहासिकता भारतीय मनीषा ने जीव को अन्नमय कोष से लेकर आनन्दमय कोष तक यात्रा कराने हेतु अपनी नवनवोन्मेष शालिनी कारयित्री एवं भावयित्री प्रतिभा से वरेण्य-श्रेण्य-साहित्य का सृजन किया है, जिसमें महाभारत का अन्यतम स्थान है क्योंकि यह एक ओर वेदों का उपवृंहण कर पंचम वेद की संज्ञा से अभिहित हुआ है, वहीं दूसरी ओर इसमें तट्युगीन सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिस्थितियों का आकलन, अविकल निदर्शन है। मानव हृदय के अज्ञानान्धकार को विदीर्ण करने वाले ज्ञान-विज्ञान, सृष्टि-विद्या-रहस्य, कला, संस्कृति भक्तितत्त्वों का संग्रह, विश्लेषण है। जगत्‌ू जगड्वाल-आबद्ध जीव की यथार्थ मयी दशा, आकांक्षा का निरूपण कर निखिल पुरुषा्थ प्राप्त करने वाले तत्त्वों की व्याख्या भी महाभारत में सर्वत्र हुई है। इस प्रकार भौतिक जीवन के मरुस्थल में पीयूष धारा प्रवाहित करने वाले ज्ञान के इस संचित कोश महाभारत का प्रणेता, उसका रचना काल अत्यन्त विवादित है। वेदों, का संकलन, वर्गीकरण, पुराणों एवं उपपुराणों के साथ महाभारत का रचयिता क्या एक ही व्यक्ति है या व्यास-उपाधि है? इस सम्बन्ध में ध्यातव्य है, कि वेद, पुराण आलोच्य ग्रन्थ महाभारत के प्रणेता एवं उसके रचनाकाल-निर्णय के लिए हमें पुराणों के प्रणेता व्यास विष्सयक सामग्री का संक्षिप्त विश्लेषण आवश्यक प्रतीत होता है। कहा गया है, कि विश्व सृष्टा ब्रह्मा ने सभी शास्त्रों के पूर्व पुराणों का स्मरण कर वेदों का आविर्भाव किया- (कर) पुराणं सर्व शास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्‌। अनन्तरं च वक्‍्त्रेयो वेदास्तस्य विनिर्गता: ।। यही तथ्य वायु एवं पद्म पुराण में प्रतिपादित किया गया है कि ब्रह्मा प्रत्येक द्वापर युग में व्यास रूप धारण कर चार लाख वाले पुराणों की संरचना करते हैं- (रख) प्रवृत्ति: सर्व शास्त्राणां पुराणस्या भवत्तदा। 'कालेना ग्रहणं दृष्टवा पुराणस्य तदा विभु: । व्यास रूपस्तदा ब्रह्मा संग्रहाथ॑ युगे-युगे। चतुर्लक्ष ... प्रमाणेन.. द्वापरे जगौ।।” (1) मत्स्य पुराण-33/3 (2) वायु 103/58-59 (3) पदम्‌ू पुराण सृपिट खण्ड-1/51-52




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