जनवादी कवि नागार्जुन चिन्तन और संवेदना | Janvadi Kavi Nagarjun Chantan Aur Samvedana

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Janvadi Kavi Nagarjun Chantan Aur Samvedana by नवता - Navta

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नवता - Navta

Add Infomation AboutNavta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
है पेश किया है। हैं। बहुत बड़ी ताकत हैं उनके ये व्यंग्य बहुत बड़ी सम्पदा है यह उनकी उनके सामर्थ्य की पूरी अनुकूलता में । आधुनिक कविता के व्यंग्य लेखकों में वे सिरमौर हैं | राजनीति समाजतन्त्र अर्थनीति शासन-तन्त्र धर्मनीति देश-विदेश के नेता समाज के नौकरशाह थैलीशाह राजनीतिक छुटभैये चापलूस बटमार साधू-सन्यासी पीर-फकीर पण्डित-मौलवी सब उनके व्यंग्यो की लपेट में आए हैं और सबकी असलियत उन्होनें खोली है। वे आधुनिक कविता के कबीर हैं| जाहिर है कि जिसकें पास व्यंग्यों की इतनी विशाल पुँजी हो उसमें कुछ अपेक्षाकृत बहुत सीधा तथा स्पष्ट भी शामिल हो गया हो व्यंग्य व्यंग्य न रहकर अभि ॥ पर उतर आया हो तो आश्चर्य नही होना चाहिये परन्तु साहित्यिक पैमाने पर उसमें कोई कसर भले ही देखी जाऐ उनका कथ्य अकाट्य ही रहेगा । परन्तु हम नागार्जुन को उनके उन व्यंग्यो के लिए महत्व देते हैं उनकी उस प्रतिभा के कायल हैं जो अपने युग के बड़े सटीक व्यंग्य लेकर सामने आई है। ऐसे व्यंग्य जिनकी मिसाल नहीं है मसलन प्रेत का बयान मन्त्र तालाब की मछलियाँ मांजो और मांजो वे और तुम तो फिर क्या हुआ घिन तो नहीं आती आओ रानी भूले स्वाद बेर के तीनों बन्दर बापू के छब्बीस जनवरी पन्द्रह अगस्त जैसी व्यंग्य रचनाएं भुलाने की चीज नही है। इनके अलावा उनके ढेरों राजनीतिक व्यंग्य है। उनकी शासन की बन्दूक रचना और फिर इन्दु जी पर लिखी गई इनकी तमाम नुक्कड़ कविताएं तथा बाघिन पैने दाँतो वाली जैसी उनकी रचनाएं नेहरू पर तुम रह जाते दस साल और कामयाब योजना पर खड़ाऊ थी गद्दी पर और मोरार जी गुलजारी लाल नन्दा आदि के अलावा. सम्पूर्ण क्रान्ति अथवा खिचड़ी विप्लव पर लिखी गई उनकी छोटी मझोली रचनाएं विदेशी महाप्रभुओं जैसे महाप्रमु जानसन पर लिखी कविता आदि -कविताएं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । इन व्यंग्यो की परिधि बड़ी व्यापक है । सामाजिक राजनीतिक व्यंग्यो की इतनी विपुल और इतनी सार्थक सम्पदा आधुनिक युग के किसी भी रचनाकार के पास. . नहीं है। नागार्जुन ने इस लिहाज ज से भारतेन्दु और निराला की परम्परा को समृद्ध ही... | नहीं किया अधिक एक नई परम्परा की शुरूआत भी की है। .......... नागार्जुन देश जनता तथा धरती के कवि हैं। देश जनता तथा धरती उनके अप . यहाँ अमूर्त न होकर एकदम सगुण साकार है अपने उनके लिए महज एक भौगोलिक... है इकाई ही नहीं एक सजीव सत्ता है। जिसे उन्होने और बुराइयों के साथ जाना समझा... .. (15)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now