विस्मृत यात्री | Vismrit Yatri

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Vismrit Yatri by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देशादन श्रादमीकी बहुत सी श्रान्तियोंको दूर कर देता है,इसीलिये कूपमंड्रकताको : .. अज्ञानका पर्याय माना जाता है। ...... गाँव से बहुत दूर नहीं थे । उन हिमान्छादित शिखरोंको हम देखते ईक जिनके. ... दाहिने-बाँवेसे ये दोनों नदियाँ निकलती हैं। गाँवके एक शरसे सुवास्तुमें .. जानेवाली नदी बहती थी, जिसकी थारा छोटे-बड़े चड्टानोंके ऊपर उद्ललती . रात-दिन घर्‌ घर घर्‌-बर्‌ स्वरमें कोई गम्भीर गीत गाया करती थी पत्थरॉपर |... ..... उछलता. पानी. दूधकी तरह सफेद दिखाई पड़ता था. ।. बचपनमें .. मैं समझता था; यह सचमुच ही दूध है । लेकिन हाथमें उठानेपर वह पानी हो. कं _ जाता था। कुछ नीचे, जहाँ हम गर्मियों में नहानेके लिये जाते थे, वहाँ पक थी पानीका एक. कुएड बन गया. था, . जिसका रण हल्का नीला या गहरे सह ः गे _.. हरेरंगका था | गाँवसे ऊपर की ओरका सारा पहाड़ देवदार वुक्षोंसे दँका था । ........ जाड़ोंके दिनोंमें जब गाँवके श्रौर लोगोंके साथ हमारा परिवार मी घरकों बन्द बी कर झपने पशु-पाशियों को ले नीचेंकी श्र मस्थान करता, तो मुझे गाँव कक ..... छोड़नेका बड़ा खेद होता।कंभी-कभी|माँके साथ. ननिहालमें मैंने जाड़े बिताये | की, ........ वहाँ तीन-तीन हाथ मोटी सफेद बफचारों ओर भड़ जाती । उसवक्त हम लड़के बर्फके ........ कितने ही प्रकार के खेल खेला करते | मैं पूछता था, कि हमारा परिवार मी; :......' जाड़ोंमें अपने ही गाँवमें क्यों नहीं रहता १ माँ कहती--हमारे यहाँ श्रौर भी सके ...... श्रधिक बर्फ पड़ती है, श्र कमी-कभी बर्फके सैलाब रा जानेका डर रहता है, .... ' धक्के से . घरके घर चूर-चूर हो जाते हैं । फिर यहाँ जाड़े भर एक ....... तिनका या घास पशुत्रोंके लिये नहीं मिल सकता; और झ्रपने जमा किये हुये घास- रे ........ भूसेसे हम,उनको दो महीने से अधिक नहीं पाल सकते | उस वक्त मेरी बाल-कल्पना ...... कहती थी, कि यदि मीषणा हिंमवर्ीमें भी सदा हरे रहनेवाले देवदारके पत्ते... हारे पुओंके लिये बारी तर चारेका काम देते, तो कितना श्रच्छा होता... . तब तो हम जाड़ोमें भी आपने गाँवमें ही रहते । अधिक से था | कुनार श्र सुवास्तु जैसी विशाल नदियों के उद्गम हमारे.




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