हरिजन | Harijan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
77.17 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand) नौ दूनी !'
“नौ दूनी श्रठारद |”
“फिर ?'
** फिर मद्देश चुप ।
दोबारा सुनाश्रों ।'
है ३ री न पी स द नौ ्् ग नो प्
नौ एकम नौ. नौ दूनी श्रठारह, नो तिया सत्ताइंस, ना चचॉक छ्युत्तास, न त्प्र्ट्
बहत्तर'* *** ? श्रौर चटाकू से मददेश के गाल पर चाँया पड़ गया । बस म्रलय हो
गया ! वह तो पहले ही भरा बेठा था ? “क्या श्रानन्द से खेल रहे थे। बड़े आए,
वहाँ से पढ़ाने. वाले की ढुम बन कर । सारा मज़ा किरकिरा कर दिया । श्रौर फिर
तोचना चाहिये थां कि जब श्रमी झभी उसके मस्तिष्क को इतना बिगाड़ दिया है तो
पहाड़े में एक श्राघ भूल तो होगी ही | श्रौर फिर नौका पहाड़ा ! जिसके विषय में
महेश का विश्वास था कि जीवन भर याद करने पर भी ठीक ठीक याद नहीं होगा |
तौर ऑ्ाज ही क्या विशेष बात हो गई जो ले कर तड़ से जड़ दिया ! श्रौर दिन
भूल होती थी तो मारने की घमको श्रवश्य देते थे, पर कुन्दे तोल तोल कर रह जाते
थे मारते नहीं थे-- बल्कि साथ साथ भूल सुधार देते थे?-- यही सब सोच विचार कर
मद्देश ने श्रपने स्वर-तंदु्रों की शक्ति का विराट प्रदर्शन आ्रारम्भ कर दिया । उसे
चिल्लाते देख रमेश ने एक श्र जमा दिया, “सुझर फैल मचाता है ? रो कर डराना
चाहता है ?” श्र तभी रमेश की माता जी ग्ज॑न-तजेन करती हुई रसोई में से निकल
श्राई । इन्दु हाथ का फूल निकालना छोड़ भागी आई तर बाबू रामचन्द्र हुक्के की
नली मुँह से निकाल कर दौवार के सारे टिका कर उठे ओर बोले, “रे क्या. कर
रहा है , रमेश १' न मर
..... पिता जी तो इतना कह कर जुप दो रहे पर माता जी बोलती ही रहीं; “आज ही
जान मारेगा उसकी ? बड़ा आ्राया पढ़ाने वाले का बच्चा चल के । तू तो जेसे पढ़-
लिख कर इतना ही बड़ा पैदा हुझा था | हमें नहीं पढ़वाना । हमारा गंवार ही श्रच्छा |
बहुत होगा मास्टर लगा लेंगे
नब काम नहीं करेगा तो मास्टर कया छोड़ देगा ?” रमेश ने तरक॑ किया |
प्काम क्यों नहीं करेगा । श्रभी बच्चा ही तो है । घीरे धीरे सब सीख लेगा ।
... श्रपने दिन भूज़ गया ह'
पे इसकी तरह मूर्ख थोड़े ही था ?'
...... हाँ, तू तो .बढ़ा चतुर था । दो दूनी बीस तू ही बतलाया करता था श्र
.... आआलमारी को झलाली कहना. तो तूने बुडठा हो कर छोड़ा । ठम अपने दिन मले ही
: भूल जाश्रो, हमें तो सबके याद हैं...
उप गरम
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