सत्याग्रह मीमांसा | Satyagrha-mimansa

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Satyagrha-mimansa by रंगनाथ दिवाकर - Rangnath Diwakarराजेन्द्र प्रसाद - Rajendra Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[. उच्नीस | न उसकी तनिक भी चिन्ता करता हैं और न घेक को ही हाथ लगाता है। यह हे नीतिविहीन तेजोबल का काम । जिस व्यक्ति का केवल तेजोबल ही जाग्रत हो जाता है उसे यद्द वो मालूस होता है कि उसका श्येय क्या है और उसे प्राप्त करने का निश्चय सी वह रखता है ; लेकिन साघन के सम्बन्घ से वद्द लापरवाद्द रहता है। उदाहरणाथ, जिस शक्ति से दिदलर ने एक पीढी के अन्दर ही जमंनी को एक बलवान राप्ट्र बना दिया वह नीति निरपेक्ष तजोवल का ही एक प्रकार थी और इसी प्रकार के तेजोवल से चर्चिल, स्टालिन तथा छलवेत्ट ने सित्रराष्ट्रों की हार को जो वित्ऊुल नजदीक आ गई थी दूर भगा दिया श्और शथुरी-राष्ट्रों को परानित कर ढिया । हसारे देश में भी एक ओर ब्रिटिश साम्राउय को मजबूत वनाये रखने के इृद निश्चय सें जो सासर्थ्य दिखाई देता है उसमें तथा दूसरी झोर राष्ट्रीय महासभा के स्वराज्य के निश्चय मे नो सामथ्य दिखाई देता है उससे दो ठेजोवलों का ही गजग्राह- बिग्रह चालू हूँ । तेजोवल के इन सब भिन्न-भिन्न उठाहरणों में हिटलर चर्चिल; रूजवेरट, स्टालिन या ब्रिटिश साब्राज्य वाद के प्रतिनिधियों की शक्ति को कोई सत्यात्रद-वल नहीं कह सकता । लेकिन कॉग्रेस की सामथ्य॑ को सत्याग्रहद-चल कहते हैं । कम-से-कम कॉर्रेस के नेता-- अर्थात्‌ गांधीजी के प्रयत्न और उद्देश्य के लिये तो ऐसा कहने में कोई हज नहीं है । ऐसा क्यों है ? दोनों में क्या न्तर है ? हिटलर या चर्चिल्त एण्ड कम्पची का साधन की शुद्धता-अशुद्धता के सम्बन्ध में कोई झाय्रह नहीं है। यदि यह प्रतीत हो कि किसी साघन में विजय आत्त करवा देने की शक्ति है तो चस यह उनके ल्लिए सही हैं । उन साधनों का प्रयोग करने में नीति-झ्रचीति का अ्रश्न उन्हें स्पश नहीं करता और हम जानते ही हैं कि संसार में धन तथा बल मे श्र ्ठ अमेरिका जेसे प्रजातन्त्रीय राट्र ने विजय श्राप्त करने के लिए ऐसे महा भयंकर अत्याचार किये जो पहिले इतिहास से कभी देखे नहीं गये हूं । इन राष्ट्रों का अपना तेजोवल्र तथा इनके द्वारा बनाये हुए




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