श्री प्रयाग तीर्थ कर्म पद्धति | Sri Prayag Tirth Karm Padhati
श्रेणी : धार्मिक / Religious, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.87 MB
कुल पष्ठ :
113
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).. तपंण मारंभ ( देवर्षि पिंत तपंण )
स्नान करके पविज्न वस्त्र धारण कर पूर्वाभिसुख होकर तीन बार श्ाचमन
... छूर पवित्री पहन कर संकल्प करे |
' संकल्प--5* डायेतस्य न्रह्मणेडहि द्रितीय ग्रदराद्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे
जम्चूददीपे भरदखरुडे . चआय्यावतकदेशे कलियुगे कलिम्थमचरणे
पुरयक्षेत्रें. अमुकसंबत्सरे--अमुक्षभासे--अमुकपक्षे अमुकतिथी--
झमुकवासरे--अमुकगोत्रो 5सुकनामांहं देवषि पितृतपंणुंकरिप्ये
चावल अर तिकुशा लेके एक-एक अंजलि जल श्रर्घा-से देवे ।
5 ब्रह्मादयोदेवा आगच्छन्तु _ यददणन्त्वेताञलांजलीन 5 न्रह्मा
तप्यताम्ू 5* विष्णुस्त० 5 रूद्रस्ट० 5 ग्रजञापतिस्ट० 3“ देवास्तु०
ख* छन्दांसिस्तृ० 3” बेदास्त० ७ ऋषयस्त० . पुराणाचायीस्ट्०
5 गन्ध्बास्त्०. ० इतराचार्यास्तृ० 5 संयत्सरास्तृ० 5 देव्यस्त०
,. ४* 'प्सरसस्त्र० 3 देवानुगास्त० 3 नागास्त० व“सागरास्ट्० 2 पबंतास्त ०
व सचितरस्त्० < मनुष्यास्त्० यक्षास्त० <* रक्षांसिठ० 5* पिशाचास्त०
# सुपणास्त ० ० भूतानिद ० ० पशवस्तू० ० वनस्पतयस्त० ४* औषधयस्त्र०
«४ भूतप्रांम चतुर्विघस्तू० ॥।
_ इन ऋषियों को भीं पूर्वमुख बेसे ही देववत् जल देवे ।
मरिच्यादि . दशऋषय: ।. आगच्छन्तु यृहन्खेताजलांजलीन
.... ४ मरीचिस्त० ४ अत्रिस्त० 3 अंगिरसस्त० पुलस्तयस्त० ० पुलहस्त०
* क्रतुस्त० प्रचेतास्त० स्* वसिष्ठस्तृ० ० भरूगुस्त० ० नारदस्त० 1!
_ जनेऊ झंगोछा. कणठीं के समान करके उत्तर मदद बैठकर दो अंजलि.
जल कुश श्रौर यक' से देवे ।
हे सनकादय: सप्तमुनयः चागच्छन्तु ग्रहणन्तेतांअलाखलीन
४ सनकस्तप्यताम् ०* सनन्दनस्त्० 3 सनातनस्तृ० ४ कपिलस्त०
'झासुरिस्त० <* बोदुस्ठ० । <* पद्चशिखस्ट्प्यन्तास ॥।
पसब्य होकर दक्षिणामुख तीन-तीन श्र्नलि इनकों भी
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