ईसुरी की फागें | Eesuri Ki Phage
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.09 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक चबूतरे के रूप में वहाँ उनका स्मारक बना है और
बगौरा में वह घर भी श्राबाद है जिसमें कि इंसुरी बहुत
दिनों रहे । इंसरी की फागों से जिन सउ्जनों को थोड़ा भी
प्रेस है, उनको एक बार इन दोनों स्थानों की तीर्थयात्रा-
झवश्य करनी चाहिए । हर
इंसुरी विशेष पढ़े-लिखे नहीं थे । पर सरस्वती की उन
पर विशेष कृपा थी। वे जन्म-सिद्ध कवि थे । देहातों में
होली के झवसर पर एक प्रकार के थीत गाये जाते हैं ।
वे फाग कहलाते हैं । इंसुरी की सहज काव्य-प्रतिभा इन
फागों के रूप में ही प्रस्फुटित हुई है । शिष्टसमाज में
होली के इन गीतों का कोई चलन नहीं है । वे एक विशेष
प्रकार के धाथमिक सुर और ताल के रूप में प्राकृत मानव
के सन का उच्छूवास मात्र हैं । पर इंसुरी को यह श्रेय
प्राप्त है कि उसने अपनी अद्भुत और स्वाभाविक कविच्वशक्ति
के बल से इन उपेक्षित और अनादत गीतों को साहित्य श्र
संगीत का एक अनुपम रूप म्रदान छिया है । यह उसकी
सबसे 'बड़ो विशेषता है । हमारे कुछ मित्र उसको 'महा-
कवि' कहते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो उसकी रजऊ नाम.
की काल्पनिक नायिका में झाद्याशक्ति नारी का परस उदात्त
रूप देखने के प्रयापी हैं । परन्तु इस तरह की चेषा हास्या-
सपद है । इंसुरी कवि था । एक ऐसा कवि, शिक्षा और
झजुभव के द्वारा जिसका पूण॑ विकास नहीं हो सका, तो
सूढे पाणिडत्य ने जिसकी कविता को कृद्चिम नहीं बनाया !
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