शैतानी - पंजा | Shaitani Panja

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Shaitani Panja by देवबली सिंह - Devbali Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डा दूं शोतानी-पज्ा टु डे नडिव द* एससी रह) नकीन दूसरा पॉरिच्छेद । बरस निशीथ कालमें राजासाइब । रो साहब स्तस्मित होकर बहुत देरतक उस । मरणोन्मुख जीवन-शिखाकी ओर शून्य टूष्टिसे ४ ताकते रहे। इस खेखक महाशयकों अपनी ) उपस्थित बुद्धिका बहुत गर्व था । परन्तु मौका ** पड़नेपर अक्सर मनकी बुद्धि हवा खाने चली जाती थी | लेखक मद्दोदय यदि चाहते तो ऐसी कितनी ही घट- नाओंकी अवतारणा करके 'माटि नजिदा” जैसी कितनी हौ पुस्त- कॉकी संख्या बढ़ा सकते थे। परन्तु इस टूश्यकों आंखों के सामने उपस्थित देखकर वह्द एक वारगी किंकत्तव्य विमूढ़ हों गये । बहुत देरतक इसी मानसिक उत्तेजनामें रहनेपर एकाएक उन्हें एक वात सूभ्ही । उन्होंने अस्फुट स्वरमें कहा-“डाकूर कश्ब- रली तो शायद घरपर ही होंगे । क्यों न में उन्हींकों बुलाऊं ?” इस विचारके उठते ही उनकी असा इता जाती रही । मानों उनमें नयी शक्तिका आविर्भमाव हो गया । एक छलांममें वह - कमरेसे बाहर निकले और सीढीसे होकर दोतछेंपर अपने मित्र डाकूर कस्बरलीके पास जा पहुंचे । क ' इघर पाठागारमेंगघड़ी टिक टिक करती हुई अपने निदि प्थपर चलने उगी । अब ऐसा भास दोता था कि १२ बजनेका तक




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