भारतीय संगीता का इतिहास | Bhartiya Samgita Ka Itihaas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
144.95 MB
कुल पष्ठ :
570
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. सरग्गंद्र श्रीधर परांजपे - Dr. Saraggandra Sridhara Paranjape
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ ............... भारतीय संगीत का इतिदास
.... विशुद्ध सर अर्थात् 'लाईट म्यूजिक' के नाम से व्यवहूत है, जो सदेव 'कामचार-
... प्रवित' हुआ करता है.
.... प्वेदित्व च तत्तदेशमजुजसनोर॑जनेकफलत्वेन कामचारम्रवतिंतम
_. संगीतकला का प्रवाह सदेव दो धाराओं से प्रवहित होता रहा हर
सांग तथा २. देशी । प्रथम में शास्त्र के अनुगमन के द्वारा कला की परिप्कृतता
तथा अभिजातता पर ध्यान दिया जाता है, दूसरे में छोकाभिरुचि नियामक तत्व
होता है तथा दास्रपक्ष गौण होता है। प्रथम के छिए विशिष्ट संस्कार एवं
: दिक्षा-दीक्षा की आवश्यकता होती है, दूसरी सम्पकं तथा खैहज संस्कारों से प्रसुत
होकर स्वजनबोध्य होती है । दोनों में कढाकार की सौन्दर्यानुभूति का विशिष्ट
स्थान रहता है, केवल अन्तर यह है कि “मार्ग' में वहुंनियमों की सीमा में आवद्ध
रहती है तथा 'देशी' में उसकी अभिव्यक्ति अपेक्षाकृत स्वच्छ्द रूप स होती
हु ध्यान में रखना आवश्यक है कि माग॑ तथा देशी दोनों परस्पर सामक्ष
संज्ञाएँ हैं । प्रत्येक कला. जनजीवन से सम्बद्ध होने के कारण उसका देशीत्त
निविवाद है । कांछक्रम से जब उसका अपना व्याकरण बन जाता है, वहीं कला
मार्ग' कहलाती है । साम तथा गान्धवं दोनों का मुलाधार जोकसंगीत रहा है
और इस दृष्टिकोण से दोनों मूलतः देशी संगीत का प्रतिनिधित्व करते हैं । संस्कार
एवं परिष्कार से संयुक्त होने पर इसी का अन्तर्भाव मार्ग में किया जाता रह
्््ड । सामवेद भारतीय, संगीतकला का प्राचीनतम निद्शन है । इसका स्रोत
तत्कालीन लोकसंगीत ही रहा है तथापि यज्ञयाग जैसे धार्मिक समारोहों से तथा
समाज के उच्च वर्ग से सम्बद्ध होने के कारण उसमें संस्कार तथा नियमबद्धता की
मात्रा बढ़ गई और उसे शिष्ठसम्मत मार्ग संगीत का स्वरूप प्राप्त हुआ । इसके
अतिरिक्त लौकिक समारोहों पर गीत, वाद्य तथा नृत्य का आयोजन बराबर
.. किया जाता रहा ।. यह संगीत 'देशी संगीत” रहा हो, ऐसी यथार्थ कल्पना की
. जा सकती है । रामायण में लवकुश के द्वारा श्रीरामचन्द्र के समक्ष 'मार्ग' प्रणाली
. से गान किए जाने का उल्लेख है।* यद्यपि मार्ग तथा. देशी का. स्पष्ट विभेद
रामायणकाल में निरूपित नहीं, तथापि “मांग” से तात्पयं शिष्टननसम्मत प्रणाली
. से रहा हो ऐसा प्रबल अनुमान किया जा सकता है।
_ खंगीत का उद्गम :--- .................. खुप -
पुराविदों के अनुसार संगीतकला तथा शास्त्र का उद्धव स्वयम्भू परमेदवर
से हुआ है । भारतीय परम्परा के अनुसार नटराज शिव नृत्यकछा के आदि स्रोत
सास चकलरनिरसववलतनवनित
का कि
१ - डर संगीवरत्नाकर पर था कल्लिनाथ व्याख्या ।
२. विस्तार के लिये द्र० इसी प्रबन्ध का अ० ३-'महाकाव्यकाल में संगीत' ।
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