बातें जिनमें सुगन्ध फूलोँ की | Baaten Jinme Sugandh Phoolon Ki

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Baaten Jinme Sugandh Phoolon Ki by अहमद सलीम - Ahmad Salim

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज़बानकों अच्छा कहे जा रहे हैं, वाह रे हुस्ने एतिकाद ! झरे बन्दे ख़ुदा, उदू बाज़ार न रहा, उदूं कहाँ दिल्‍ली कहाँ ! चल्ला अब दहर नहीं कैम्प हैं छावनी हैं, न किला न दाहर न बाज़ार न नहर--जामा मसजिदसे राजघाट दरवाज़े तक रको-दकू सहरा हैं । इंटोंका जो ढेर पड़ा हैं वह अगर उठ जाये तो हूका मकान हो जाये । कइसीरी दरवाज़ेका हाल तुम देख लुक अब आहिनी सड़कके वास्त कलकते दरवाज़े तक सेदान हो गया । पंजाबी कटरा, घोबी वाड़ा, रामजी गंज, सआदत खाँ का कटरा, रामजी दास गोदामवालेकें मकानात, साहब रामका बारा हवेली इनमें-से किसीका पता नहीं मिलता । किस्सा सुख्तसर दाहर सहरा' हो गया ।” -एमजरूड़के नाम १. चवीरान | ग़ालिब प्र




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