अग्नि - सूक्त | Agni Suukt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ १४ कर्मों का प्रकाशक ऐसा इन पदों का अर्थ होता है यज्ञ शब्द सम्परश सत्कर्मो का बोघक है । तथा श्रीमद्घागवदुगीता में यज्ञ के अनेक भेद वगन किये छू दब्य यज्ञ तपो यज्ञ ज्ञान यज्ञ स्वाध्याय यज्ञ इत्यादि अनेक प्रकार के यज्ञ हु दव्य का सत्क्म में दान करने से दव्य यज्ञ सिद्ध होता है अधम को छोड़ घर्म का अनुष्ठान करने से तपो यज्ञ होता हे ज्ञान का उपदेश करने से ज्ञान यज्ञ बनता है वेदादिं शास्त्री का अध्ययन करने से स्वाध्याय यज्ञ ट्वोता है जितन थच्छे कार्य है वे सब यश ही डे जिन कार्यो में सत्कार संगति तथा दान होता है उन सब खसत्कृत्यों को यज्ञ कहते ट्ें इन सब सत्कत्यों का प्रकाशक अथांत्‌ ज्ञान दाता छोने से परमेइवर को यज्ञ का देव कड़ा हे ॥ दिष्प-- देव शब्द का दाता झ्थ केसे डोता है ॥ +# यज--देव पूजा संगति करण दानेपु ॥




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