जैनबालोपदेश | Jainbalopadesh

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Jainbalopadesh by जसवंतराय जैनी - Jaswant Rai Jainy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ १५ मे क में संतान का कारण मया पीछे सास ने अजना कोन अनादर से कहा कि कुठकों कल ठगानें वाला प दूर कहां स बढ़ा फिया है तो उसने पाति की बह दी हुई निशाना दिखाई परंठ सास ने एक न माना और अपमान कर काले कपड़े पहना काले ही रथमें चढ़ा फिसा वन में छोड़ने को नीकर को हुकम दिया माता पिता आदिक से भी आनादर की हुई वन में भमती और अपने परों से निकले रुविर से मानों भूमि कें। अकित करती हुड वह एक उजाड़ वीयावान जेगर में पहुंची अनेक तकलीफ सहन करती हुई भी वह अपने गील की पालना करती भई 1 वनकी एक शुफा में वालक पैदा हुआ ओर उसका मामा अपने नगर अचुरुहपुरण लेगया इस कारण चालक का नाम हुनु- रन पढ़ गया और इस तरह से वह मामा के घर बा होनि लगी ॥ इतन मे रावणकी मदद करके पवनजय नगर में आया ओर अपनी अजना के निकाले जाने का सुन अतीव खेद अजना सुद्रीके सियाग से पबनजय गई पढ़कर मरनेके भाव की ख़बर सुन कर हुडमान ्त कि.




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