योगेश्वर कृष्ण | Yogeshwar Krishna

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Yogeshwar Krishna by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१० फी यदद घडुत विशति थी. जिसके झागे या उसे थना कर समूचा भारत, नव-मस्तिष्क छुभा धार शव हर है। इसी दे फबि ने उत्दें “ऊदगुरुमार” कटा । सच्य ने सच फद्दा था:<--- यत्र योगेखवर: फणणों यत्र पार्घों घनुघर: । तत्र श्रोविंजयो नीतिरमंतिर्मभ ॥ पर, उऊ “जहाँ येगिश्वर कृष्ण हैं, जहाँ घनुधंर भ्रजुंन हैं, वहाँ लदमी है, विजय है, श्रट्टट नोति है। यह मेरो दृढ़ धारणा है ।” भीष्म शान्तिपर्व में फददते हैं:--- सर्वे योगा राजधर्मेषु चौक्ता: 1 शान्ति० इ२, ३२ “सभी योग राजपर्म में कद्दे हैं ।'” कोप में भी कहा है:-- “योग; संहननोपायध्यानसंगतियुक्तिपु ।”” मददाभारत में योग शब्द का प्रयोग नीति तथा उपाय के झर्थ में हुमा है । स्वयं श्रोक़ृणण कहते हैं:--“याग: कर्मसु कीशलमू,।”” ट्रोथ ने कद्दा, का. नियद्द “योग” से होगा, श्रर्धात्‌ उपाय से ।. भीप्म फे शब्दों में सब यागों का एक यागराज- [थर्म है। कृष्ण उसी के इंश्वर, उसी के पारंगत पश्डित, «उसी की मूर्त प्रतिमा थे । वे इसो से “योगेश्वर” कहलाये । सचमुच एक साम्राज्य ( पा 3 की स्थापना से बड़ा धार कौन सा योग दो सकता या। उसी योग का कल विजय, विमूति, खुबनी लि”! दे पे सह, न संचेप




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