योगेश्वर कृष्ण | Yogeshwar Krishna
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.29 MB
कुल पष्ठ :
404
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१०
फी यदद घडुत विशति थी. जिसके झागे या उसे
थना कर समूचा भारत, नव-मस्तिष्क छुभा धार शव
हर है। इसी दे फबि ने उत्दें “ऊदगुरुमार” कटा ।
सच्य ने सच फद्दा था:<---
यत्र योगेखवर: फणणों यत्र पार्घों घनुघर: ।
तत्र श्रोविंजयो नीतिरमंतिर्मभ ॥
पर, उऊ
“जहाँ येगिश्वर कृष्ण हैं, जहाँ घनुधंर भ्रजुंन हैं, वहाँ लदमी
है, विजय है, श्रट्टट नोति है। यह मेरो दृढ़ धारणा है ।”
भीष्म शान्तिपर्व में फददते हैं:---
सर्वे योगा राजधर्मेषु चौक्ता: 1 शान्ति० इ२, ३२
“सभी योग राजपर्म में कद्दे हैं ।'” कोप में भी कहा है:--
“योग; संहननोपायध्यानसंगतियुक्तिपु ।”” मददाभारत में
योग शब्द का प्रयोग नीति तथा उपाय के झर्थ में हुमा
है । स्वयं श्रोक़ृणण कहते हैं:--“याग: कर्मसु कीशलमू,।””
ट्रोथ ने कद्दा, का. नियद्द “योग” से होगा, श्रर्धात्
उपाय से ।. भीप्म फे शब्दों में सब यागों का एक यागराज-
[थर्म है। कृष्ण उसी के इंश्वर, उसी के पारंगत पश्डित,
«उसी की मूर्त प्रतिमा थे । वे इसो से “योगेश्वर” कहलाये ।
सचमुच एक साम्राज्य ( पा 3 की स्थापना से
बड़ा धार कौन सा योग दो सकता या। उसी योग का
कल विजय, विमूति, खुबनी लि”! दे पे सह, न संचेप
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