उपहार | Uphar

Uphar by श्री विनोदशंकर व्यास - Shri Vinodshankar Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ कारण प्राकी और माऊुत में किसे गये थे भारत की. प्रमुख संस्कृत भाषा तथा उसके परिवारचग की अन्य भाषाशों में थी कहानियों का पूर्ण विकास हुआ था । मददाभारत में प्रसंग के झतु- सार घहुत-सी छोटी-दोटी झाख्यायिकाएँ चर्तसान हैं । पुराणों को सो पुक अरकार से घारमिक उपास्यानों का संग्रह दो कहना झोगा । पश्नतन्त् दिंठीपदेश-इत्यादि संस्कृत के प्रसिद्ध कथा-झन्थ हैं किन्दु घन्य झपजश भाषाओं सें भी भारतीय प्रचलित कहा- गयों का एक अदा संग्रह था । ईसा की पहली शताब्दी मैं पैशाची भाषा में बूदत कथा की रचना हुई जो अब संस्कृत की कथा-मजरी और कथा सरित्‌ सागर के रूप में उपलब्ध है । पश्चतन्त्र-झादि का तो झरदी भर फ़ारसी भाषा में अनुवाद मुख ही किन्तु कथा के रचना-संगठन का फरके सस्र-रजनी -चरितन्न-इत्यादि अन्य में बने । इस तरह के की एक श्रघान विशेषता है कि किसी पक ब्यक्ति को केन्व् बनाकर समाज में प्रचलित अनेक आख्याधिकाईँ संक्ा दी जाती हैं और यद क्रेस भी शावकों के प्रचार से अजुकरण किया गया था । जातकों के राला और के भरवाइनदस के दी ढंग ५९ फ़ारस के राजकुमार सी कक्पित किये गये जिनके चारों झेर सदस्त रलसोनवरित्न की अआस्पा्णिकाएँ थीं । मर संस्क्ृत-सांदिस्य मैं इस दंग को अभ्तिस सझकन . सुंगाकुसारि- शर्त्रि दे । इस तरंइ से आप देखेंगे कि सारतीय




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