महाराणा प्रतापसिंह | Maharana Pratapsingh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.98 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३)
की परीक्षा के लिये कई एक मोटे सत इकट्ठे करके
काटन को ठहरोई, तब मैंने, हाडमास को काटनेत्राली'
तढवार को सूतपर परीक्षा होना उचित न समझकर
अपना अशक्ति पर उसकी परीक्षा की थी ? आश्ये मैं तयार
दे | प्रतापर्सिद के नेत्रों में धफ ९ अधि जलने ठगी वह अति
कुद्ध हाकर गरजउठ,कि अब था बकवाद करनेकी आवइय
कत्ता नहीं है; मत्तापसिद दार्ते नहीं चाहता काम चाहता है,
तत्कारू दोनों माइयों ने स्यान से तकदार निकाली और
परस्पर मद्दार करने को खड़े होगये, उस समय दोनों की
भयावना सात का दूखकर तहां खडे हुए सब लोग नेत्रों
को मंद कर हुदय में इष्ट देवता का स्मरण करेंने छगे, सब
ही मांन आर चेष्टाराइित काठकी पूताछी योकी समान खड़े थे,
समाप मे खड़ हुए एक मद्दात्मा का हृदयसमुद्र हिलोरें
केने कगा, वह उदार चित्त महात्मा ओरों का हित चाहने
वाले दौर पुरुप इस भयानक घटना को
देखकर स्वनाद्य होता समझ उन्मत्त की समान तहां आगे
को चढ़े, उस परादितकारी परम सांम्पमृत्ति को देखकर स-
चही ने अचंभे गे होकर मांग छोड़ दिया। तदनस्तर वह परम
तेजस्वी एरुप अपने मा्णों को समझकर जलते हुए
अग्निदुंडकी समान उन दोनों भ्राताओं के मध्य में जाकर
खड़े होगये,इन मद्दारमाने एकवार दयामय नेत्रोसि दोनों भाईयों
के मुखको आर देखा आर कहने लगे कि थमो धीरज थ
रो, में दुद्दाइ देता हूं एकंजना शान्त होजाओ , यह क्रीदा
बस
झूमि है ; नहीं दे आर भाई २ म॑ युद्ध होना वा-
रुतविक क्षत्रियों का धर्म नहीं हे, लड़ाई बन्द करो तुम्हारे
५ चर अल
भाक चारया के हृदय से मावष्ट हा तथा यह घोड़े श् झो-
न
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