मोक्ष मार्ग प्रदीपिका | Moksh Marg Pradipika

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Moksh Marg Pradipika by किशन दयाल सिंह - Kishan Dayal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१5 पद चलन आदि इस्थ्रियों से माप्त नहीं होता वह सयं नि- शन दमा सब जीवों को नियम से चलाता और धारगा करता है । उसके श्रति और इन्द्रिय गम्य ने होने के कारगा धर्मात्पा विद्राद योगी को ही उसका सानान ज्ञान चोना द दूससें को नहीं । ॥ नज़्म में ॥ नहीं चनना हुआ भी ब्रा मन से तेज़ चलता दै। यहीं हैं इन्ियाँ उस के परस्तु वदद विचरता है ॥ नह च्यापक है इसीकारगा भली विधि सब जगह दाज़िर। श्रयून है बद मार फिर भी सभी को पार करता है ॥। पदारथ सब्र चलित जो हैं उलेयन उनको करता हैं । उसी में सूनात्मा वायु कर्म धारण भि करता इ ॥। वहीं है बायु के अन्दर वह जल धारण भी करता है । वही तो मेघ बन कर के संसार करता ई ॥




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