महात्मा गौतम बुद्ध का जीवन चरित्र | Mahatma Goutam Boddh Ka jeevan Charitar

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Mahatma Gotam Bodh Ka  jeevan Charitar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१६ ) खुगमता से फेलानेकी इच्छा से आपने व्यावहारिक भाषामें उप- देश करनेकी प्रथा जारी कर दी । पहले आपने इन साठ शिप्योंका पक संघ निर्माण कर उन्हें अपने धघर्म्म का अच्छी तरहसे उप- देश किया भर लोगोंमि सत्य-धघर्ग्मका प्रचार करनेके लिए उन्हें देश-देशान्तरों में शरेजा । वे स्वयं लोगोंकों उपदेश करते हुए गाँव- गाँवमें घूमा करते थे । बड़े-बड़े लोग उनका दर्शन करने आया करते और अत्यन्त आदरसे उनका उपदेश सुना करते थे । वे स्वयं... वौद्धधघर्स्मको स्वीकार करते और दूसरोंको भी उस 'घर्म्मका स्वीकार करनेके लिए वाध्य करते थे । कभी टू्टान्तरूप कथाएँ कह कर, कभी ' बाद-विवाद कर, कसी सरल भापा में और कभी. व्यावहारिक उदाहरण देकर वे अपना उपदेश दिया. करते थे। वे हमेशा अपने शिष्यों और मोक्ष की इच्छा करनेवाले लोगोंसे घिरे रहते थे । उनका बर्ताव, उनका वैराग्य, अप्रतिम था ।. उनके शिष्य-समुदायमें अनेक जाति... और दर्जे के लोग शामिल थे । स्त्रियॉको उपदेश देकर उन्हें भी वे अपने धर्स्स में शामिल कर लिया करते थे । बड़े-बड़े प्रतापी राजा भी उनके उपदेशकों आदरकी द्र्रिसे देखते थे । आपको अपनी विद्वत्ताका कभी घमंड नहीं हुआ । वे अहंकार, मोह और कामविकार इत्यादिके प'जेमे कसी न फंसे थे । मदान्ध होकर आपने किसी का कभी बुरा ल चाहा था । उनके शतुओंने कई वार आपको नाना प्रकार के कष्ट दिये पर आपने उन्हें अपने सौजन्यसे और अपनी श्षमाशीठ




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