आत्म शक्ति का विकास | Aatm Shakti Ka Vikas

Aatm Shakti Ka Vikas by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ मनुष्य होतें हैं कि अंतमें अंधविश्वासमें इनका परिणाम होता हैं तीसरे पुरुष ऐसे होते हैं कि जिनमें न तो तकना रहती हैं ओर न भावना रहती हूं परंतु अतः््रद्व तते ? ही इतनी जबर दस्त होती है कि वे किसका सुनते नहीं ओर बडे दुराग्रहसे अपनी अंतःप्रवृत्तिके अचु तार ही कार्य करते जाते हैं । ये तीन ही प्रकारके पुरुप यदि देंववझात्‌ यशस्वी हुए तो हुए निश्चयसे पुरुषाथकें साथ होंगे एस संभव नहीं | इसछिये न्यायशाख योगश्लाख ओर ध्यानयोग की सहायतासे उक्त तोनों शक्तियोंका ऐसा समाबविकास करना चाहिये कि तीनों शक्तियां स्वाधीन रहें और निश्चयके साथ पुरुषाथे करके मनुष्य यशको प्राप्त कर सके | - साधारणतः विवक झाक्ति मस्तिष्कमें भावना दझाक्ति हृदयमें ओर अतः प्रवृत्ति प्रप्ठ वंशके मूठाघार चक़में रहती हैं । आसनोंमें शषासन कपाठासन विपरीत करणी मुद्रा आदि करनेसे पूर्वाक्त झक्तियोंकी वराद्धि होने योग्य मज्ातंतुओकी सबछता हो जाती है | इसके साथ साथ पूर्वोक्त शास्तराका उत्तम अध्ययन करनेसे अपू्व ठाभ दो जाता हद | अध्ययनके साथ अनुपानकी भी अंत आवदयकता है इसम काइ सदंह नह है | कई लोग ऐसे उतावले होते हैं के ठीक प्रकार सोचते हीं नहीं । सब प्रमार्णाका चथायोग्य विचार करके करने योग्य कठव्य उत्तम रीतिस करने चाइये तभी सिद्धि प्राप्त हो सकती हे




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