विचित्र - परिवर्तन | Vichitra Parivartan

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Vichitra Parivartan by उमेश कुमार - Umesh Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ सनसे भी फिर वही सग्ाम आरस्म इआ । ये काय्येकेशल .ें चतुर थे यूनीवसिटीके स्नातक बज्यूथद थे परिश्रम दील अच्छे वक्ता और अच्छे लेखक थे परन्तु अभाव था तो केवल सादस आत्मदल और दृढ़ इच्छारशक्ति का । उनका चित्त प्वाहता तो बहुत था कि स्वराज्य आन्दोलन सम्मिलित होवें काय्येक्तेत्मे पदापेणा कर कत्तेव्यका पालन करें सर्वसा घारणा- को देश-सेवा और स्वदेद्ालुरागका पाठ पढ़ावे परन्तु रेसा करनेके लिये उनका साहस नहीं होता था अात्मवल काम न देता और जो भाव चित्तमें उठते वे वहीं विलीन हो जाते थे | परन्ठ॒ मजुष्यका दृदय जिस कामके करनेको वारबार चाहता है वह सरक दिन अवद्यही उसे आरस्म कर देता है उसकी प्रवाति अवद्यही समय आने पर उस अ्योर हो जाती है- रेखा प्रकतिका नियम हैं । स्वयं इंश्वर उसका सहायक होकर उसके सामने उसी प्रकारके भाव साधन और युक्तियाँ ला उपस्थित कर देता है । वाबू मदनभोह्दन कत्तव्यशील होना तो चाहते थे परन्तु साहस न होता था यह भी उक्त नियमाछुसार उनके सहपा- एठियो चर सिन्नोके प्रोत्साइनसे दूर हो गया बह स्वराज्य-सभा में सम्मिलित होगये और दो रक अधिवेदनक पश्चात्‌ ही उनकी काय्य झुदलता देखकर से सर्स्मतिसे उनके ऊपर सन्नी- पदका सार रख दिया गया । अब मदनसोहन काय्ये करना तो चाहते थे परन्छु युप्त रीतिसे-इस कारणा नहीं कि अब भी वे शीरू च्ौर साहस हीन थे वरन्‌ इस कारदशा कि वे अपने दृद्ध पिताको च्पघ्रसन्न करना नहीं चाहते थे | सक दिन सभाका अधिवेदय समाप्त होनेपर भदनमोहन घर पहुँचे और अभी कपड़े ही उतार रहे थे दि नगरके कोत -




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