तजुर्मा कुरान शरीफ़ | Tajurma Kuran Sarif

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Tajurma Kuran Sarif by अहमद बशीर - Ahmad Bashir

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४७ रहना चाहियें। पस्तू ठन्दोंने छंद समय सका में प्रथकित्त रूद़ि और चासपदयाद फे विरुद्ध वाद उला । कोइ देश और को ऋ्षाए बपों ने दो ग्याप दादा के घन रदे धर्म पर थास्था होना स्वाभाषिक दै। कोइ मद नहीं सोवता छि बाप-दादों की थे सक्ता मप से सुष्टि चत्त रही दे शापी शायु हो पिनी नहीं सा सही । उन बाप-्दादों ने समय समय पर कितनों भिन्न मिनन सा पता मानों और उनमें किहने मधुर भसुर सभी होते रदे इसका विदार कोई नहीं करता | ध्स्तु उप्ठो बाप-दादा सं पाप्न सत्कॉकीन पासपइगाए झौर दुत चार में प्रस्त दुरेश पश मुपक मुदम्मद के साधनों समक्ष लीं से छुपित हो उचे कम देने कगा । छिपते भागते फिर भी पने मांग पर इृठ घुइम्नद चोरे घोरे कामों को अपने महानुझूश धनाएं रहे | भ्रारम्म में तो यद दाश था कि. बंद अपने प्रफार की इस्काम के अतुदार नमाश भी खुकफर नहीं पढ़ सकने थे | इनके निज के परिवार के लोग इनके चथा शुष्क दादि इनके परम शधु बन मेठे धर इनके व का भी एस्न करने लगे । दा इन एरदक और चचा अशुठाज़िन लो का साहा दे मुसक्षमान ठो अन्त तक न हुए परन्तु इनके सदेव सहा थक रद । विचारों में समुन्नत भौर क्रांतिकारी दोते हुये मी सुदम्मद पढे-लिखे न थे | इश्पर कृपा धौर सस्ठग ऐे ४० बे फी अवरपा में ठरें पलिमाइक फारइठा दिवदूत के दशन हुए चोर तब से उई कुरान को झायतों का शान प्रफट होता रह । यहीं से उनको पेगम्नरी आरम्भ हुई । यह कान पद पमापतहें कइलाती हैं । मुइम्मद ने इन आापतों को मक्का के प्रतिष्ठित मन्दिर के घर्मावारयो झीर शनदा सभी को सुनाना समसान। अरम्म किया | धवूबकर इस्काम के पदले शकाफा हबरत भक्तों सुदम्मद सादब के दामाद तथा फक और शोरदार व्यस्वि इनके भनुशगी दो चुके थे | इनफा ब्त कर बढ़ता देश फुरेश सरदारों को अपनों प्रतिष्ठा भर स्वार्थ की हानि का. मय हुआ । डन्होंने इस्काम के झनुयायियों पर झसइनीप अस्पायार झारम्भ कर दिगे जिससे भपमीसत हद थे मुहम्मद साइव की आाशा ऐे अरब छोड़ छोड कर झफूका के इबरा प्रदेश में था बसने करे |




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