हिंदी साहित्य की पीठिका | Hindi Sahitya Ki Peetika
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34.97 MB
कुल पष्ठ :
857
श्रेणी :
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No Information available about राजेन्द्र प्रसाद - Rajendra Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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हृष्टि से रंगमंच का विशिष्ट स्थान है। रंगमंच का बहुत संकिप्त वणन पंचम
श्ध्याय में है । संस्कृत सादित्य के दृश्य काव्य प्रायः श्रमिनेय थे लिनका प्रदर्शन
रंगमंच पर होता था । सुसलिम श्राक्रमणों से श्मिनय कला तथा रंगमंच को
बहुत घक्का लगा । परंठु रंगमंच मरा नहीं । संस्कृत नाटकों के भाषांतर तथा
मौलिक नाटकों में से बहुत से श्रमिनीत होते रहे। इस श्रथ्याय में रूपक श्रौर
श्रमिनय के संबंध, रूपफ के सेद, हिंदी नाटक श्रौर रंगमंच, श्रमिनय शास्र श्रौर
साहित्य एवं कला श्रादि प्रश्नों पर प्रकाश डाला गया है |
इस भाग का श्रंतिम पंचम खंड बाह्य संपक तथा प्रभाव है । भारत
प्राचीन काल से ही सभ्य श्रौर संस्कृत तथा पशिया के दक्षिण के मद्दान् देशों में
मध्यवर्ती होने के कारण संसार की श्रन्य सम्यताश्रों श्रौर संस्कृतियों के संपकं;
संचर्प श्रौर समन्वय में प्रमुख माग लेता श्राया है । पौराणिक परंपरा के श्रनुसार
भारत से कई मानव घाराएँ मध्य एशिया तथा पद्चिमी एशिया तक पहुँचीं जिससे
विविध मापाश्रों शरीर साहिस्यों का संगम श्रत्यंत प्राचीन काल में प्रारंभ हो गया |
इसके पर्चात् इन देशों से मानव जातियों लगातार भारत में श्राती रहीं श्र
धापने साथ श्रपनी भाषाएँ श्रौर सादित्यिक परंपराएँ भी लाती रहीं । न्यूनाधिक
मात्रा में बलावल के श्रनुसार श्रादान प्रदान चलता रहा । यद्द लंबा इतिहास
पाँच श्रध्यायों में संच्िप्त रूप से वर्णित है । प्रथम में यवन-पहुर्वों से पूव॑ पश्चिमी
एशिया तथा भारत के संबंध तथा भारत के ऊपर सुमेरी, बाबुली, तथा ईरानी प्रभाव
का श्राकलन है । द्वितीय में यवन-पहुच प्रभाव का सीमानिर्धारण, तृतीय में शक-कुषण
प्रभाव का श्रौर चठ॒थ में हूण-किरात प्रभाव का विवेचन किया गया है । श्रबतक
की श्रानेवाली जातियाँ इस देश को श्रंशतः प्रभावित करते हुए. भी यहाँ के जीवन
में पूणुत। विलीन हो गई । पंचम श्रध्याय में श्ररव; ठुके, सुगला तथा युरोपीय
प्रभाव का विश्लेषण दे । श्ररब, तुक श्रौर मुगल श्रपने राजनीतिक प्रसार में, किंतु
इसलाम से श्रनुप्राणित द्ोकर; यहाँ श्राप थे । उनको श्रपने धर्म, संस्कृति तथा
भाषा का श्रात्रह था । वे भारतीय जीवन में संपूर्ण खो जाने को तैयार नहीं थे |
बहुत दिनों तक उनका जीवनक्रम स्वर्तत्र श्रौर वहाँ के जीवन के सामानांतर “चलता
रद्दा। परंठु संपक श्रौर सानिष्य का तक तो श्रपना कार्य करता रहता है।
स्थिति के वशीभ्रूत होकर दोनों को एक दूसरे के निकट श्राकर श्रादान प्रदान
करना पढ़ा । जीवन के श्रन्य क्षेत्रों के साथ हिंदी भापा श्रौर साहित्य ने इन जातियों
से बहुत कुछ ग्रहण किया । युरोपीय झुद्ध श्राक्रमणुकारी श्रौर शोषक थे । वे भारत
में बसने नद्दीं श्राए; थे । श्रतः भारत में श्रत्यंत वजनशीलता के साथ रहे; उनके
श्रादान प्रादान का प्रश्न दी नददीं था । उन्होंने श्रपनी राजनीतिक सत्ता की तरद
देश पर श्रपनी भाषा श्रौर संस्कृति का श्रारोप करने का प्रयत्न किया । परंतु केवल
के द्वारा झँगरेजी भाषा श्रौर युरोपीय संस्कृति का प्रभाव भारत पर उत्तना
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