सुभाषित मंजूषा | Subhashit Manjoosha

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Subhashit Manjoosha by चौधरी रामसिंह - Chaudhary Ramsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ चरण कमल चन्दों हरिराई | जाकी कृपा पंछु गिरि ठंचे, अंधे सब कुछ दरशाई । चहिरों सुने मूक पुनि वोलै, रंक चढ़े शिर छत्र घराई !| “सूरदास स्वामी करुणामय, वार. वार वन्दों तो हि पाई ॥ [ घम्म का तत्त्व । “पलक कै संक्षेपात्कथ्यते धर्मों ज़नाः किं विस्तरेण वा । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीड़नसू ॥९४॥। हे मनुष्यों ! तुम्हें संक्षेप रूप से धर्म का सार कहते हैं, विस्तार से क्या प्रयोजन है, परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को दुःख देना यही पाप है । परहित .सरसि धरम नहिं भाई । पर पीड़ा सम नहिं अघधमाई ॥ (तुलसीदास) . ; हट कि कि 3) दे दिन (छठ) ,नपनपा हो एड एस उसे पर पनराप0 मव्ाश द्रपे आज़ार व हरचे ख्याददी कुन 1 कि दर शरीयते मा रोर अज़ी गनादें नेस्त ॥ (दाफ़िज़) मे जे ञु 2 ुउ. क भरुष्टादशपुरा णानां सार सार॑ समुदधतम्‌ । फहीं कहां इस्स स्छोक का पहला पद इस प्रकार मो पाया जात है। न्च्न्चं ही दि नाना पी




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