सुभाषित मंजूषा | Subhashit Manjoosha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.43 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६
चरण कमल चन्दों हरिराई |
जाकी कृपा पंछु गिरि ठंचे, अंधे सब कुछ दरशाई ।
चहिरों सुने मूक पुनि वोलै, रंक चढ़े शिर छत्र घराई !|
“सूरदास स्वामी करुणामय, वार. वार वन्दों तो हि पाई ॥
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घम्म का तत्त्व ।
“पलक
कै संक्षेपात्कथ्यते धर्मों ज़नाः किं विस्तरेण वा ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीड़नसू ॥९४॥।
हे मनुष्यों ! तुम्हें संक्षेप रूप से धर्म का सार कहते हैं,
विस्तार से क्या प्रयोजन है, परोपकार ही पुण्य है और दूसरों
को दुःख देना यही पाप है ।
परहित .सरसि धरम नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अघधमाई ॥ (तुलसीदास)
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(छठ) ,नपनपा हो एड एस उसे पर पनराप0
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कि दर शरीयते मा रोर अज़ी गनादें नेस्त ॥ (दाफ़िज़)
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क भरुष्टादशपुरा णानां सार सार॑ समुदधतम् । फहीं कहां
इस्स स्छोक का पहला पद इस प्रकार मो पाया जात है।
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