वेदान्त दीपिका | Vedant Deepika
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.35 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७ )
है। यदि कोई ऐसा कहे कि रेत मे दिखाई देने वाले जल से
किसी की प्यास नहीं बुकती; यदि जगत् भी रेत के जल के
समान है तो उसके जल से प्यास घुमनी नहीं चाहिये और उससे
प्यास बुमती है तो जगत् और मरुअल समान न हुए । यह कहना
बिना विचार का है क्योंकि जगत् अज्ञान रूप है और उससे मरु-
जल अज्ञान मे अज्ञान रूप दै इसलिये दोनो की सत्ता में भेद है।
जगत् की प्यास जगनू के जल के समान सत्ता मे जाती है घर
जगत की प्यास जगत् से विषम सत्ता वाले मर जल से नदीं
जाती ।
जैसे मिट्टी से बने हुए मटकने; सकोरे, घट 'आादि देखने में
और भिन्न भिन्न उपयोग में आते समय सिट्टी सिचाय दूसरी वस्तु
नहीं है; इसी प्रकार नाम रूप वाली आकृतियां अधिप्लान में
दिखाई देती हुई भी अधिप्ान ( न्रह्म ) से प्रथक् नहीं हैं। वे ही
चाकृतियां जगत् है ।
जैसे सुबण मे हाथीघोड़े होना असम्भव है तो भी चित्र
किये हुए द्ाथी; घोड़े दिखाई देते हैं, जैसे आकाश मे नीलता
तीनों काल में नहीं है परन्तु दीखती है, जैसे लकड़ी का दटूँठ कभी
मनुष्य नहीं होसक्ता परन्दु श्रम से दिखाई देता है; इसी प्रकार
भ्रस के कारण न बना हुआ भी जो दीखता है वह जगत् है ।
जेसे वगीचे में नेक वृक्त होते हैं परन्तु दत्त बगीचे को छोड़कर
दूसरी वस्तु नहीं हैं । समग्र बगीचे को देखने पर बत्त भिन्न भाव
' से नहीं दीखते 'और जब चुज्ञ दीखते हैं तब वगीचे का भाव नही
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