हालावाद और बच्चन | Halavad Aur Bachhan

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भगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr

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श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) किंतु बात यह भी हैं कि रॉयामकी प्रसिद्धि एक क्विकी अपेक्षा ज्योतिपी, और हकीम ( वैद्य ) के रुपमे अधिक रही है । उनके ये रूप इतने उवलंत रहे हैं कि उनके सामने उनका कवि-सूप गौण पड़ जाता है। इतना ही नहीं तो उस युगमे ईरानमे प्रत्येक च्यवित जो कुछ भी वोलता था वह कविता हो होती -कवित्ता उनके दिलोकी घडकनके समान स्वाभाविक वन गयो थी, इसलिए, भी, यह अपना आकर्षण सो वैठी थी और कवि बनना कोई महरंवपूर्ण बात नहीं मानी जाती थी और जहाँ ईरानके अन्य जगमगाते सितारे काव्याकाशम चमक रहे थे (रूमी हाफिश आदि ) उनमें ये भी । मिलकर रह गये पर पर्चिमने ऐसी एक भी विभूतिके दर्शन नहीं विये थे, अतः ये बहाँ जाकर अधिक हो चमके जो स्वाभाविक भी था । * घरका जोगी जोगडा आन याँयका सिद्ध ' की उयित व्यर्थ नहीं कही गयी । खैपामके अप्रसिद्ध रहनेवा प्रधान कारण यह भी हैं कि उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा, अपने बौद्धिक पक्ष द्वारा बड़े-दडे घामिक नेताओंकी और सिद्धातोको सुकराकर, जुठलाकर अपनी मान्यताओकों स्यापित करना चाहा था, यह नहीं कि उनकी रचना- ओमे बुद्धिका प्राघान्य होनेके कारण थे (खैयाम) ठीक समझे नहीं गये । यहू घामिक आधात धर्मके ठंकेदारोसे सहन न हो सका, इसीलिए उन्होंने खैयामकी फिलासफी (दर्शन ) को गत रूपमे रखा और उसे शरीयतका विरोधी एव काफिर कहा । उस युगकी विशेष विचारघारा यह भी रही है कि ' जैसा तुम्हारा मालिक देखता है, लुम वैसा ही देखो । ** क्तु हम देखते है कि खैयाम स्वतत्र विचारोके समर्थक थे और उन्होंने कुरानकी व्यारूपाओका खडन करते हुए अपने मनोनुकूल वीद्धिक आधारपर नयी व्याय्याएँ प्रस्तुत की जहाँ कि, मजहब तकंको नही, केवल विदवास (अकीदे ) को ८ ( * एफाएंट 35 फाकडॉटा * पट प्रा01(0 0 सच) कीट ए एफ 3, है... शी, 500. फू > 11 5




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