विप्लव | Viplav

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Viplav by राधामोहन गोकुलजी - Radhamohan Gokual Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) राय चद्दादुर लाला बैज्नाथ जी की श्राह्ाछुसार समाज खुधार के प्रचार किया । इसी बीच में सन्‌ १०१ में इनके पक सात्र पुत्र का श्६ चष की आायु में देदान्त दो गया । तब यह माता पिता सबको लेकर झागरे जा रहे श्रौर श्रब तक इनके सब भाई चहीं रदते हैं, परन्तु कई वर्षो से यद सबसे एथक्‌ शपना जीवन झपने विचारों के श्रननुलार व्यतीत करते हैं। क्योकि इनके विचार में मनुष्य मात्र एक ज्ञाति है, इनका परस्पर खान पान विवाह सस्वन्ध होना चाहिए, धर्म श्रौर इंश्वर भूठा ढकोसला है । इस प्रकार के विचार वाले का जाति बन्धन अस्त कुटुम्व में निर्वाद न हो सकना साधारण वात है । १8०४ मे दागरा आर्य समाज में एक मुसलमान की शुद्धि हुई, उसके दाथ की मिठाई इन्होंने भी खाई । इनकी माता ने कद्दा कि तू मिठाई खाने से इनकार कर दे पर इन्होंने यह बात न मानी ! कुछ दिन बाद थदद चर्चा स्वतः दूच गई । इन्हें खसाज सुधारक होने के कारण आर्य समाज से बड़ा प्रेस था, इन्दोंने यथा साध्य त्रा० सामाज की सेवा करने में कसो कसर नदीं की | बहुत से लोग इन्हें झवतक कट्टर श्राय्यं समाजी डी सम- भते हैं । इनके ईश्वर का बहिष्कार नामक लेख छुपने के पश्चात कुछ लोगों को मालूम हुआ कि यह ईश्वर सम्बन्धी धघर्स्से में कुछ घोर्मिक प्रेम नदी रखते । किन्तु दिन्दू संस्कृति श्र दिन्दू जाति की रक्षा के लिए श्राजभी यदद प्रांश बिसज्न करना श्पना क्तेब्य समझते हैं ।




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