भारतीय शब्द कोश | Bhartiya Shabd-kosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bhartiya Shabd-kosh by श्री गदाधर प्रसाद अम्बष्ठ विद्यालंकार - Shri Gadadhar Prasad Ambashth Vidyalankar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री गदाधर प्रसाद अम्बष्ठ विद्यालंकार - Shri Gadadhar Prasad Ambashth Vidyalankar

Add Infomation AboutShri Gadadhar Prasad Ambashth Vidyalankar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(७. ) तारकपु ज--द्राकादय के तारों को पहचानने के लिए. उनमें से ुख्य-मुख्य तारों के नाम रख दिये गये हैं | फिर समस्त तारक-समूद को झलग-दलग पुषजों में बाँया गया है | हम चीन, भारत, श्ररब, मिस्र तथा शझ्राघुनिक पाश्चात्य देशों के अनुसार तारों के नाम और पुषज मिन्न-भिन्न पाते हैं । आधुनिक ज्योतिपियों ने पहचान के लिए छोटे-छोटे तारों के नम्बर भी दे दिये हैं श्रौर समस्त तारक समूह को ८८ पुजों में बाँटा है। प्राचीन भारतीय ज्योतिधथियों के ग्रनुतार आकाद के कुछ मुख्य तारकपु ज निम्नलिखित हैं--ससर्षि, दिशुमारचक्र, शेषनाग, पुलोमा, काशका, कपि (गण) हिरण्याक्ल, वराह, उपदानवी, शुनी, हृत्सप, ईद, सुनीति, ददानन, सपमाल, वीणा खगेश, दृयशिरा त्रिक, जलकेत, ब्रह्मा, कालपुरुप, वंतरणी, झगस्त, त्रिदंकु, क्रौह्न श्रौर काकसुशु'डि । गणना के लिए जिन तारक-पुजों की विशेष आवश्यकता होती है, वे मुख्यतः नक्षत्र श्र रादि के नाम से जाने जाते हैं। नच्त्रों की संख्या २७ श्रौर राशियों की संख्या १२ है, जिनका विशेष विवरण श्राग दिया जाता है । बकाश-गंगा- यह छोटे-छोटे घुसे प्रकादावाले सघन तारकपु जों दी पंक्ति है जी उत्तर से दश्चधिय को भर पेशी हुई हैं। ब्रीच में इसकी दो दछाखाएँ भी दो गई हैं जो गे चलकर फिर मिल॒जाती हैं। यह झंँघेरी रात में बहुत स्फष्ट दिखाई पड़ती है | नक्तत्-सूय, चन्द्र एवं श्रहगण तारों के बीच पश्चिम से पूरब की रो चलते हैं । सूर्य जिस मार्ग से तारों के बीच पश्चिम से पूरब की शोर चलकर वप-भर में चक्कर पूरा करता है, उसे क्रान्ति-दत्त कहा जाता है। चन्द्रमा भी इसके श्रासपास ही पश्चिम से पूरब की श्रोर चक्कर लगाता है और मध्य गति से २७ दिन, १६ घड़ी, १८ पल और १६ विपल में उसे पूरा कर्ता है। ६० विपल का एक पतन, ६० पल की एक घड़ी या दंड और ६० घड़ी या दंड का एक दिन-रात होती है | चन्द्रमा के २७ दिन में चक्कर पूरा करने के कारण गगनमंडल को २७ भाग में बाँटकर प्रत्येक भाग के नक्त्र-पुरज का प्रायः उसके काल्पनिक द्राकार के श्रनुसार नाम दे दिया गया है । प्रत्येक नच्त्र १३३ झंडा का होता है । चन्द्रमा की गति सदा एक-सी नहीं होती । इसलिए एक नक्षत्र को पार करने में चन्द्रमा को ५४ से लेकर ६४५ दंड तक लग जाता है। श्रत; प्रत्येक नद्ुत्र का मान एक नहीं होता । सूर्योदय-काल से जितने घड़ी-पल्न या घंटमिनट तक चन्द्रमा जि नक्तत्र पर रहता है, पंचांग में उस नक्षत्र के नाम के सामने वही अंक लिख दिया जाता है। जो नक्षत्र एक सूर्योदय के पीछे श्रारम्भ होकर दूसरे सूर्योदय के पूर्व ही समास हो जाता है, उसका समय कोष्टक में नीचे छोटे अंक में दे दिया जाता है, पर स्थानाभाव से नाम नहीं दिया जाता । झ्ाकादा में पश्चिम से पूरब की शोर २७ नन्ुत्रों के नाम ये हैं--श्रषश्विनी भरणी, कत्तिका, रोहिखी, सगदिरा, झ्रार्दा, पुनवंसु, पुष्य, श्ाश्लेपा, मघा, पूर्वाफाल्युनी उत्तराफाल्युनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विद्याखा, श्रनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाघाढ़, उत्तराषा श्रवणा, घनिषा, दातभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा ओर रेवती । प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में बाँय्ते हैं। फलित ज्योतिष में, उत्तरापाढ़ के चोथे वर्ण तर श्रवणा के ० पहले १४वें भाग को अभिजित्त नक्त्र कहते हूं। छृत्तिका नक्षत्र को साधारण जन कच-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now