कहानी कला और प्रेमचंद | Kahani Kala Or Premchand

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Sangharsh Nahi Sahayog by श्रीपति शर्म्मा - Shreepati Sharmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ से दूर हो जाने के कारण उसका कथा-कहानो का सा रूप हो गया है ॥ कथा का पुराना रूप कल्पित ही होता था यथायथें ऐतिहासिक यां पूर्वचटित नदी । श्राधुनिक कहानियों में यद्यपि छुछ ऐतिहासिक इति- वृत्त वालीं भी होती हैं तथापि उनका वास्तविक रूम कल्पित ही होता है । इसीसे वैंगला में कहानी का नाम गल्प कल्प स्‍ कल्पित है । पुरानी कथा कादबरी भी कल्पित है सुबंधु की चासवदत्ता भी कल्पित है। इस वासवदत्ता का उदयन की वासवदत्ता से कोई संबंध नहीं । जीवन के यथाथे से यदि कहानी का अधिक पाथंक्य हो जाय तो वह गल्प से निरो गप्प रह जाती है । श्राघुनिक कहानियों के श्रारंभ के समय ऐसा दी हु । तिलस्मी और ऐयारी कहानियों में मनमानी घबनाओ का ऐसा योग और सयोग घटित किया जाने लगा कि उनकी यथाथता में संदेह हुआ । जासूसी कहानियों में अयथाथ॑ता संभाली गई वे यथाथें होकर मी तकंपुष् भूमि पर स्थित दिखाई पढ़ीं । ऐसा हो सकता है? यह मानने के लिए पाठक विवश हो गया । पर उसकी झयथार्थता की शंका से बह श्रपने को मुक्त न कर सका । अब साहित्यिक कहानियों की सजना यथार्थ की जॉच के साथ की जाती है । यथाथ श्और श्राद्श का जो कगड़ा कथा-कहानी के क्षेत्र मे उठ खडा हुआ है वह कहानी को कविता से प्रथक्‌ करने के ही लिए नहीं स्वगत संशीधन के लिए. भी । पर साहित्य में झ्राने पर कहानी घटित घटना तो होती नही संभावित घटना ही होती है इससे. प्रकृत ऐक्लुझर श्र यथार्थ रियल में मेद करके काम चलाया जा रहा हैं । कथागत घटना का प्रकृत होना आवश्यक नहीं पर उसे यथार्थ झवश्य होना चाहिए. । वह कृत्रिम न जान पढ़े उसका प्रकृत रूप सभाव्य हो कथा-कद्दानी का वाड सय जब से श्रधिक बनने लगा तबसे -यथर्थ




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