सरित दीप | Sarit - Deep

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Sarit - Deep by कैलाश चन्द्र पीयूष - Kailash Chandr Peeyush

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहां पास गाँव यहां पूछा उससे उद्दां ढांव हाथ हिला बोला--सुभमसे तम ने निज चादर में विश्व लपेटा जन-समुह जा जा निज घर में लेटा 1 रात हुई देख बढा मैं भी घर को तट पर ही छोड खा बूढे नर को मन मे जिज्ञासा के भाव थे घने धूमिल से कई्दें एक चित्र थे बने । ही आन पास कृन्रिमता उनके सकती स्वास्थ्य-चिन्ह रक्तिमता वहां थिरकती प्गांवों की बालाएँ स्नेह भरी है विधि ने शुचि निधियां सब यहां घरी हैं शतदल-सा मानस ले कपट हीन वे झ्.-भंगी तरल-नयन-गति-विह्दीन वे साव्विक्ता पूर्ण सरल हासमयी वे स्वर्ग सुन्दरी हैं उल्लासमयी वे। हे




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