संस्कृत साहित्य का इतिहास भाग 1 | Sanskrit Sahitya Ka Itihas Vol - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(च ) रामशंकर झुवल ( रसाल ) के अलझ्वार पीयूष, * कविराजा मुरारिदान कृत जसवन्तजसोभूषण* आदि पर इनके आलोचनात्मक लेख पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं जिनका प्रतिवाद आजतक नहीं निकला । सेठजी साहित्य-संसार में ही नहीं किन्तु माखाड़ी समाज में भी एक विशेष स्थान रखते हैं । ये कुल परंपरागत सनातनधरम के दृढ अनुयायी हैं । मारवाड़ी समाज ने आपकी सामाजिक सेवाओं का समुचित आदर किया है । द्वाथरस में दोनेवाली प्रान्तीय मारवाड़ी अग्रवाल महासभा का सभापतित्व इन्हीने प्रहण किया था । अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी पंचायत का जो प्रथमाधिवेशन बम्बई में किया गया था उसका सभापति इन्हीं को बनाया गया था । लक्ष्मणगढ़ ( जयपुर राज्यान्तगंत सीकर ठिकाना ) में होनेवाले अखिल सनातन- घमज़ुयायी माखाड़ी युवक-सम्मेलन के भी सभापति सेठजी ही थे । इन अधिवेशनों में दिये गये भाषण इनके धार्मिक तथा सामाजिक विचारों के अच्छे परिचायक हैं । मंजरी की भूमिका तथा समालोचक श्रेमासिक हेमन्त १९८४ छर० १५७१-६० १ साघुरी वर्ष ८ खराब २ संख्या ५ प्रृप्ठ ५८६-९२ और अछट्वार मंजरी की भूमिका २ द्विवेदी अमिनन्दन अन्थ और काव्यकल्पदूम ह्वि० सं० पू० २२४०३




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