कामायनी : एक नवीन दृष्टि | Kamayani : Ek Naveen Drishti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ड.) *हितली' (सदत्‌ १६७१), 'ककाल' (सवत्‌ १६८६), (भपूणं) (चि) निवन्प- हे “काव्य भौर बला तथा भन्य निवन्घ' में सकलित भाठ निवन्घ, “दामायनी” एव नाटकों वी के रूप मे लिखे गए निदन्थ तया नामव मासिक पत्रिवा में प्रवाशित पाँच निवन्घ 1 (ए) गद-गोत-- प्रसादजी ने श्रो रायडप्णा दास यो 'साघना' से प्रेरित होरर लगभग २०० २५ गद्यन्गीत भो लिये थे, दिन्तु वाद में उनमें से कुछ को तो उन्होंने 'करना' वी बविताधो में भावान्तरित कर दिया तया शेष पप्रफाशित हो नप्ट बर दिये । (३) प्रसाद जी ठा भाव-सौंदय प्रसादजी ने इन इृतियों से सामान्यतयां जिन भावों को ब्यवत निया है, उन पर विचार वर सेना भी उचित होगा । इससे उनके जीवन-दर्शन के प्रमुख सूभो को हम भनायास ही समन लेंगे प्रमादजी भ्ानन्दवादी हैं। वे मानव-मात्र में समता, ्ातृत्व, ममन्वयशीसता जैसी उदार भावनाएँ देखना चाहते थे। विश्व में व्याप्त मौन्दयं थे उपासक हाने मे बारण उन्हें सृप्टि के में सौन्दर्य बी व्याणि दिखाई देती है । नियनि यो उन्होंने चिश्व की नियामिका शकिति माना है भौर उसे विश्व के संतुलन एवं मानव-भविचारों बे नियमन में सहायक के रूप में प्रतिथ्टित किया है । भारतीय सस्कृति पोर इतिहास दे प्रति प्रसादमी के मन में प्रसीम धद्धा रही है । राष्ट्र से उन्हें भनग्य प्रेम है। मारत को ऐतिटासिवसा उन्होंने ऋग्वेद से मानों है भौर नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित स्मारन सप्रह ग्रग्च में इन्द्र यो मारत वा प्रथम सद्माद घोषित डिया है । म्पूल यान वी भपेशा प्रमादजों सूदम भभिव्यजना मे पक्ष में थे । उन्होंने मानव थी झस्तप्रदुति में सित्रण पर धधिए बस दिया है। इसो बारण स्पूल यशांनों वो भपेशा उनके बाव्य में भस्तइन्द्ध वो प्रधानता है। चरिय-चिघण में वे भादर्शवाद दे समर्थ रहे हैं । रवच्दन्दतावादी होने वे बारण उन्हों भावों भौर शैनो के सत्र में घनेव सवीन दिलाएं उद्घाटित वी हैं । प्रतोवार्मदता, साधटिवता एव उपयार-दशता उनकी धमिव्यजना शैली वे प्रमुख गुर हैं । कथन (- देखिए, “प्रसाद भौर उनका साहित्य' (विनोदशरर व्यास], प्रदेश, शष्ठ ३




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