महाकवि कालिदास की रचनाओं में वर्णित वनस्पतियाँ तथा उनका आयुर्वेदीय महत्त्व | Mahakavi Kalidas Ki Rachnao Me Varnit Vanaspatiyan tatha unka mahatva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ड०) दिखाई पड़ता जितना उज्जयिनी पर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उनके बचपन के दिन उज्जयिनी में ही बीते होंगे । वि कालिदास-डॉ0 रमाशंकर पृ0-28 के अनुसार “'अतएव यह मानने में कोई विप्रतिपत्ति *नहीं दिखाई पड़ती कि कालिदास का जन्म कश्मीर में हुआ था और यौवन का वणौपम पूर्वाद्ध उसके मनोरम अंचलों में व्यतीत हुआ था परिस्थितियों की चपेट में उसे अपनी भूमि छोड़नी पड़ी और सौभाग्य से उसे उज्जयिनी की राज-परिषद का वैभव पूर्ण वातावरण हो. गया जहाँ से उसने अपने ललित वाडमय का आलोक विच्छुरित किया। अतएव यह माना जा सकता है कि कश्मीर कवि की जनम भूमि तथा मालवा उनकी कर्मभूमि रही है। काव्य सौन्दर्य का सामान्य सहदय रसिक, ताथ्यिक अथवा ऐतिहासिक पचडों के चक्रव्यूह में न पड़कर भाव रस की स्रोतास्विनी में निमज्जन करना अधिक पसन्द करता है (अमेरिका) मिशिगन आलिबर कालेज के प्रसिद्ध प्राध्यापक डॉ० मैडाक्स फोर्ड का यह कथन मुझे सोलह आने मान्य है- निणि पड फ्0णा 90 10४6 दि फ्0पा' धागा पाठ! ए्0पा पाए ंटापाएछूड फा। फि९ तत्पर 0णा08 एव घाध घाव 1ण०0छां७5 पिन च्तोा। लावाजिट 0५ (0 ७एणाजट४ 10 00215 ए0घा _ाणाछू 85501). अर्थात्‌ यह अपनी कला के लिए आपका ज्वलन्त अनुराग है, न कि प्रवादों तथा भाषा में समर्थ बनाएगा | लिदास केवल मनोरंजन के विषय नहीं हैं अपितु उनके अवगाहन से सहदय सावधान अभिनव दिव्य एवं दरुति से स्पन्दमान बन जाता है कालिदास की कविता कामिनी. म' बुर, ते' नहीं है' अन्तःसार से परिपूर्ण है जिस कारण यग-यग का 'आलोचन' हीं बहवा सका है:-- आसक्तियों का रस लेते हुए भी अन्तिम रूप में हमें अनासकत रहना है और क्ति पाने के उदेश्य से अनुशासित होना है।




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