जैनतत्वसार | Jaintatvasar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(दे) नामक उत्तम नगरीमें श्रीशीतलनाथका सान्रिध्य माप्त करके सूरचन्द्र सुज्ञानके लिये यह ग्रन्थ रचा गया है, १९७९ वर्ष आत्विन पूर्णिमा बुधवार विजय योगमें इस म्रश्नोत्तरसे अलंकूत अमल पवित्र उत्तम ग्रन्थ पवछभ गाणिकी सहाय- तासे अदेतू परमात्माके मसादरूप श्रीकी मासतिके लिये वाचक उपाध्याय # सूरचंद्रने पूर्ण किया, * % , सूरचंद्र वाचकने अपनी पट्टावढी निम्नछिखित बताई है, ः ( खरतर गच्छकी हृददत्‌ शाखा ) जिनभद्रसूरि मेरुसुन्दर पाठक १ हपे २ मियपाठक १ चारित्र २ उदय वाचक वीरकलथ | सूरचंद्र वाचक, पमवछभ गणि,




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