गबन | Gabana

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Gabana by प्रेमचंद - Premchand

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्चोरी का कुछ पता चला? बहुत अच्छा हुआ थाने में रपट नहीं लिखाई। नहीं तो सौ दो सो की चपत और लगती। तुम्हारी पत्नी को तो बहुत दुख हुआ होगा। रमा कुछ मत पूछिए। मैं तो तंग आ गया। अब लगता है कि कहीं नौकरी करनी पड़ेगी। बताइए है कहीं नौकरी-चाकरी का सहारा? रमेश ने आले पर से मोहरे और बिसात उतारते हुए कहा आओ एक बाजी हो जाए। फिर इस समस्या पर विचार करेगे। रमा मेरा तो इस समय खेलने का मन नहीं होता। सिर पर चिंता सवार है। रमेश एक बाजी तो खेल लो फिर सोचेंगे क्या हो सकता है? बाज़ी शुरू हुई। रमा बाज़ी हार गया। रमेश बोले बोहनी तो अच्छी हुई। मेरे ही दफ्तर में एक जगह खाली है मगर तनख्वाह बहुत कम है मात्र तीस रुपए। कुछ दिन बाद पदोन्नति हो जाएगी। जगह आमदनी की है। रमा ने जताया मुझे आमदनी की परवाह नहीं। रिश्वत कोई अच्छी चीज नहीं इसके बाद और बाजियां लगीं। रात के तीन बज गए। रमा सुबह को रमेश बाबू के साथ दफ्तर गया। अर्जी दी और उसे नौकरी मिल गई। दफ्तर से घर पहुंचा तो चार बज गए थे। जालपा ने पूछा रात कहां गायब थे? रमा नौकरी की चिंता में पड़ा हुआ था। इस समय दफ्तर से आ रहा हूं। मुझे एक जगह नौकरी मिल गई है। जालपा ने खुश होकर पूछा सच कितने की जगह है? रमा ने बढ़ा कर बताया अभी तो चालीस रुपए मिलेंगे लेकिन 13




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