संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास भाग 1 | Sanskrit Vyakaran Shastra Ka Itihas Bhag 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.34 MB
कुल पष्ठ :
616
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. युधिष्ठिर मीमांसक - Pt Yudhishthir Mimansak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[रत
श--देवमू-पुरुपकारवार्तिकोपेतमू--कष्णलीलाशुक मुनि... विरचित
पाणिनीय धातुपाठ विषयक श्रदूभुत अन्य |
६--संस्ठत ब्याकरण-शास्त्र का इतिदास--प्रथम भाग । इस धार
पूर्व संस्करण की श्रपेक्ता एक तिहाई भाग ( १५.० पृष्ठ ) बढ़ गया है ।
मिच्चों का सदयोग--मेंरे प्रायः सभी मित्रों ने इस कार्य में श्रपने सामर्थ्य
के श्रनुसार सहयोग दिया है । लगमग ४० महानुमारवों ने इस की १०१) रुपये
चाली सदस्यता स्ीकार को ( कुछ का सदस्यता का श्रंश श्रभी श्वशिष है ) |
आओ पं० मीमतेनजी शास्री वेद ( डेरा इस्माईलसा बालों ) ने ग्रम्थ सख्या २ तथा
६ के मुद्रण के लिए ५.० ०+५,०० ( पक सह ) रुपया कुछ समय के लिए
सहायता रूप में दिये हैं। इसी प्रकार श्री डा० कपेलदेवजी ने श्यपने अन्थ के
मुद्रण के लिए ८० ०-०० दिए हैं ।
इस छ्लोटी सी सशि से इस महान् कार्य का द्ारम्म हु्रा है । सर्वथा श्रपयौत
साधन त्रौर केवल दो चर्प के स्वत्प काल में प्रति्ठान मे जो प्रकाशन कार्य किया है;
यह किसी भी साधन-सम्पन्न सत्या के कार्य से कहीं बढकर है, यद कहना श्रत्युक्ति
नहीं है ।
भावी कार्य
मेरी इच्छा शोध पूर्ण मौलिक ग्रन्थों के निर्माण श्रीर संस्कृत वाइमय के
प्राचीन शाप वा श्रार्षकल्प श्रत्युपयोगी ग्रन्यों के सम्पादन के साथ साथ ब्राह्मण
अन्यों के राष्ट्रभाषा में श्रनुवाद श्र त्याख्या लिखने की है । इसकी सूपरेखा मैंने
बना ली हैं । सभी उपलब्ध ब्राह्मण श्ारण्यक श्रौर प्रामाणिक उपनिपदों का दस कार्य
में समाविश होगा । यह महान् कार्य ८००-८०० सै पृ के र५. भागों में पूरा
होगा श्रौर इसमें न्यूनातिन्यून १५. वर्ष लगेंगे 1
अपने सम्बन्ध में
इस महान कार्य के लिए श्रावश्यक हैं. कि इस कार्य में झ्धिक से अधिक
समय देने के लिए मैं सब कार्यों से मुक्त हो जाऊं । इसलिए म० द० स्मारक
रक्लारा के वेदानुसन्धान विमाग के श्रध्यक्ष पद से त्याग पत्र टेकर मैं १ मार्वव
सन् १६६३ से उक्त कार्य से मुक्त हो गया हू । अर मुझे प्रधानतया यहीं कायें
करना है 1
आवश्यकता--इस महान कार्य के लिए; सब से महती श्रावश्यक्ता घन की
है। बिना घन की सहायता के यह महान् कार्य मुझ जैसे झक्खिन व्यक्ति से होना
कद
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