हिंदी अनुशीलन | Hindi-anushilan

Hindi-anushilan by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- हैछ॑ - छपे थे उनसे इनके चिन्तन की दिशा और मौलिक दृष्टि का निश्चित संकेत मिछने लगता है। विद्वविद्यालय में अध्यापक नियुक्त होने तक इनके कई शोध-निबस्ध विशिष्ट पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चूके थे। इन निबन्धों के आधार पर भाषा साहित्य तथा संस्कृति सम्बन्धी अनेक गम्भीर दोध-का्य आगे चलकर इनके द्वारा सम्पन्न कराये गये। अपने समय तक के भारतीय भाषाओं से सम्बद्ध समस्त शोध-का्यं के गम्भीर अनुशीलन के आधार पर इन्होंने सनू १९३३ ई० में हिन्दी भाषा का प्रथम वैज्ञानिक और महत्त्वपूर्ण इतिहास लिखा । सन्‌ १९३४ ई० में ये भाषा- विज्ञान के उच्च अध्ययन के लिए पेरिस गये और प्रसिद्ध भाषा-विज्ञानी ज्यूल ब्लाख के निर्देशन में इन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय से डी० लिट० की उपाधि प्राप्त की और सन्‌ १९३५ ई० में ये स्वदेश वापस आये। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्‌ ने इनको अपने मध्यदेश की संस्कृति सम्बन्धी अध्ययन तथा अनुशीलन के आधार पर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। इन भाषणों को उक्त परिषद्‌ ने सन्‌ १९५५ ई० में पुस्तक रूप में प्रकाशित किया । हिन्दी साहित्य के इतिहास के सम्बन्ध में इनकी अपनी मौलिक दृष्टि है और इस आधार पर एक स्वतंत्र इतिहास लिखने का इनका भाव रहा है। भारतीय हिन्दी परिषद्‌ के तत्त्वावधान में हिन्दी साहित्य के इतिहास के लेखन की एक ऐसी योजना स्वेप्रथम इनके द्वारा प्रस्तावित की गयी जिसमें विभिन्न कालों युगों . धाराओं तथा परम्पराओं पर लिखने के लिए अधिकारी विद्वानों को आमंत्रित किया गया। इसका द्वितीय भाग हिंदी साहित्य नाम से इनके प्रधान सम्पादकत्व में प्रकाशित हो चुका है । इसी प्रकार का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य हिन्दी साहित्य कोश भी इनके प्रधान सम्पादकत्त्व में प्रकाशित हुआ है । विश्वविद्यालय में ये सन १९३२ में रीडर नियुक्त हुए और सन्‌ १९४६ में प्रोफ़ेसर और इस पद से इन्होंने माचे १९५९ में अवकाश ग्रहण किया । इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ३५ वर्षो की सेवा की लम्बी अवधि में इन्होंने अन्य अनेक उच्च तथा दायित्व के पदों पर रह कर अपनी योग्यता का परिचय दिया है। डायमंड जुबली हास्टल के निर्माण के बाद से ही ये इसके वाडन रहे अनेक वर्षों तक विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य रहे और कुछ वर्षों तक आदंस फ़ैकल्टी के डीन के पद पर भी रहे । इसके अतिरिक्त अन्यत्र भी अनेक सम्माननीय पदों के लिए इनको चुना गया है। हिन्दु- स्तानी एकेडमी की स्थापना के समय सन्‌ १९२७ से ही ये इसके सदस्य रहे तथा लम्बी अवधि तक इसके मंत्री भी रहे है। वस्तुतः इस एकेडेमी के निर्माण में तथा इसके कार्य के नियोजन में इनका बहुत बड़ा हाथ रहा है। एकेडेमी की भाषा साहित्य तथा संस्कृति सम्बन्धी गम्भीर तथा गवेषणात्मक ग्रन्थों के प्रकाशन की गौरवपूर्ण परम्परा के इतिहास में इनका सक्रिय योग है। एक प्रकार से इसकी योजनाओं में प्रधानतया इन्हीं की कल्पना और दृष्टि रही है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय स्तर पर अध्ययन अध्यापन तथा शोध-कार्यो को नियोजित नियंत्रित तथा का ही मी से इन्होंने भारतीय हिन्दी परिषद्‌ की स्थापना हिन्दी के कुछ अन्य ब यता से की । इन दिशाओं में भारतीय हिन्दी परिषद्‌ ने पिछले १८ वर्षो में जो भहत््वपूर्ण कार्य किया है उससे सभी परिचित है। इसके अतिरिक्त ओरिएंटल कान्फ्र्स के लखनऊ अधिवेशन में इनको हिन्दी-विभाग ग




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