वेदकाल निर्मय | Vedkaal Nirnay

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Vedkaal Nirnay by रामचंद्र शर्मा - Ram Chandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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#” ९ सायका | कक कं की मासानां मागशी पोध्हस्‌ ॥ मगवदूगीता भ० १० इलोक ३५ ॥ मार्गशीष का महीना, जिस प्रकार कि घतंसान काल में बैत्र का महीना वर्पारम्भ का है वेदिक काल में बप के श्रारम्भ का मद्दीना था श्र उसका नाम श्ाम्रदायण था । इस बात के प्रमाणों का संग्रह कर लोकमान्य तिलक ने इस पुस्तक में-सिद्ध किया है कि उस समय का वद्द स्थान कि जद्दाँ राज सूये २१ साच को दीखता है ओर प्रथ्वी के बहुत भाग में रात 'और दिन वरावर चारद्द घणटों के होते हैं सगशीष नक्तत्र पर था । वर्ष में झाजकल राददिन दो बार बरापर होते हे । एक २१ सोच को और दूसरे २९ सितम्बर को । २१ माच के उस स्थान को कि जहाँ सु उस दिन दीखता है वतंमान काल का वसन्त सम्पात और २२ सितस्वर को जहाँ सूये दीखता है उस स्थान को शग्त्सम्पात कहां जाता है, क्योंकि चसन्त ऋतु का प्रारम्भ २१ साचें से और शरद ऋठु का प्रारम्भ र९ सितस्थर से होता है । किन्तु ये दोनों सम्पात स्थिर नहीं, अर्थोत्‌ के जो तारे झाज इन दोनों सम्पात स्थानों में हें सददा वे ही तारे सम्पात स्थानों पर नहीं रदते । सम्पातों में गति कोने के कारण कभी कोई तारा सम्पात पर रददता दै और कभी कोई । यद्द गठिं




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