किस्सा चहार दरवेश | Kissa Chahar Darvesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# किस्सा चहार दरवेश क श्द और चेन हुआ जब दोपहर हुई परखास्त होकर शरद रून महल हुए खासा नाशजां फ्रमाकर ख्वाव- गाह में आराम किया उस दिन से बादशाह ने यही मुकरर किया कि हमेशा सुबहकों दरवार करना झौर तीसरे पहर में किताब का शुगुलयाद दरूद- वजीफा पढ़ना और खुदा की दरगाह में तेबह अस्त गफार कर २ अपने मतलब का दुच्आा मांगी एक रेज किताब में भी लिखा देखा कि झ्रगर किसा शव्स को गम या फ़िकर ऐसे दी कि उसका इलाज तदबीर से न होसके ने चाहिये कि तकदीर के हवाले करे और थाप गोरिस्तान की तरफ रुजू होफे दूरुद पथम्बर की रुद को बरूरो और अपने तह नेस्तना- बूद समझ कर दिल को इस गुफुलत दुनियावी से हुशियार रचखे और इवरत खुदाकी कुदरत को देखे, कि मुकसे आगे केसे २ साहब मुस्को खजाना इस जमीन पर येदा हुए ले किन झापरमान ने झपनी गर दिश में लाकर साफ में मिलादिया यह कहावत है॥ चलती चक्को देखकर दिया कवीरा सेय दो पाटन के बीचमें सांवित बचा न कोय ॥




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