Book Image : कल्याण  - Kalyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# सगवान, श्रीसमकी क्पते उत्तराधिकारियंकि नाम भद्धान वसीयत * -डटटटयमययययययययमय .णणइ्णायायइपय्टय मदद सयनणटरॉटटटििटिाााणाण नपयिससस्स उन्हीं परापखा मगवान श्रीरामके भक्त अधिकारी तो हमठोग तभी हो सकते हैं, जब हम उनके परमप्रिय पूज्य गो-न्राप्णोंकी रक्षाके छिये अपने सिसें कटे चुमवानेके छिये तपर हाँ और इतनेपर भी हमारे मुखसे आह न निकले । यहीं जीवनतसर हा । उत्तराविकारियोंको सी सर्वेक्ड उत्तराधिकारकें रूपमें अपने श्रीमुखसे निकले वचनाशृतके द्वारा सौंपकर गये हैं. । उनका कहना है कि मेरे द्वारा जिस घर्मकी--जिस मर्यादाकी स्थापना की गयी है, उसका पूर्णतया परिपांढन समय समयपर आलनिवालि इस धर्मप्राण भारतके शासकाँकों तय ही करना चाहिये । यह एकमान सर्यादापुरुषोत्तम गान श्रीरामकी ही महिमा है, जो अपने इस पदिशकों सी, वारवार प्रणाम करके याचनाके रूपमें पपित करते हैं । पत्र भगवान, श्रीरामभद्रके श्रीमुखसे तेकले ये महत्वपूर्ण बचन हैं-- भ्ूयों. भूयों भाविनों.. भूमिपाला नत्वा सत्वां याचते. रामचन्द्वा 1 सामात्यो 5य घर्मसेतुनंताणां काले. काठ... पाठनीयों सबक्धिर ॥ सगवान_ श्रीराम प्र मविष्यें समय-समयपर होने- वाले भारतके शासकोंसे अत्यन्त विनम्रतापूवेक बार-बार प्रणाम कर याचना करते हुए कहते हैं कि 'हे भारतके भावी. भूमिपाकों ! मैं तुमसे अपने. उत्तराधिकारके रूपमें यही चाहता हूँ कि चेद-शाछोंके सिंद्धान्तोकी रक्षा तथा गोजाझणपरिपाउनकी जिस मयांदाकों मैंने स्थापित किया है; उसका दम भी बराबर पालन करते रहना ?? बिशवके शासकोंगें और उनकी शासन-परिपाटियोंमें आजा देनेके भाव तो सर्वत्र उपलब्ध हो सकते हैं; किंतु किसी आजाकों कातर करुणामयी ग्रार्वनाकि रूपमें बारंबार प्रणाम करके अपने उत्तराधिकारके खरूपमें कहलानेके मात ब्रेशनोंकों साम्रशाने करते सुए उसका ' कद आग्रह वाएना ण्कपान श्रीगदूरापफिद्र मे पुरुपोत्तमकी ही फिसला हे । दुसतका तो यह हैं कि आन जफो आपको उन्दीं मं श्रीरामका बक्त कहढानेवालि भी. उनकी भ लामपर केवठ पूजा, अर्चा, बठी, निद्क, साय कीतनमात्रसे ही संतोष कर खिते हैं पर उनके, पर स्ट्रॉकी माता और समसा संसारकों आ्यायित गा आदिंत्योंकी भगिनी एवं नितिद त्रह्मोण्डकों पम-५ पूर्ण करनेका दायित सुभाउनेवा गसुर्ओंद। पूज्या गोमाताकी रक्षेक्रि छियें संदिधरूप। चरनेके अवसपर उदासीनता प्रदर््षित करनेदे; दुछ नहीं करते । उनको भगवान श्रीराम आदेशपर विचार करके “विप्रचेतु सुर संतदित' चलिदान करनेके दिये तैयार हो जाना चाहिये पूज्य 'गोज़ाहझाण तथा. सनातनवर्मश्की र्कके उनके परमाराष्य भगवान्‌ श्रीरामके श्रीचरणो चुमे, उनकी रक्षाके दिये अपने इस सारे शरीर चुभोने, लाठी खाने; गोठी खाने और २ बलिदान करनेका अवसर आ चुका है । मग यहीं विशेषता है. और यहीं भगवड्धक्तोंकि ठक्षुण वे इस अवसरकों अपने हाथसे न जाने दें परम इ्टदेव भगवान्‌ श्रीरामके श्रीमुखसे निकले . पान करना और जिस कारण प्रथ्वीपर प्र अवतीर्ण हुए उसकी पूर्ति करना--यह्दी बा परम कतेव्य है । मगवान्‌ श्रीराम प्रमुकी पर करना और उनके नामकों ही माठापर छः पर उनके श्रीसुखसे निकले चचनॉंकी अवह्देठर उनपर तनिक थी '्यान न देना और जिः उनका अवतार ऐोता है, उसकी ओर ६ डालना--ये मगवद्ध्तोंक ढंक्षेण कदोपि यदि हम वास्तव सच्चे रूपमें भगवान्‌ श्रीर से थी




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