स्वदेशाभिमान | Swadeshabhiman

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Swadeshabhiman by पंडित विनायक कोंडदेव ओक - Pt. Vinayak Konddev Okलक्ष्मीधर बाजपेयी - Lakshmidhar Bajapeyi

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पंडित विनायक कोंडदेव ओक - Pt. Vinayak Konddev Ok

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लक्ष्मीधर वाजपेयी - Laxmidhar Vajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# स्वदेशासिमान है नूर लिए इस लोभमें फेस कर मैं अपनी जन्मभूसिके साथ नमकहरामी कदापि नहीं कर सकता 1 इसके बाद क्रिलिपके पराक्रमी पुत्र सिकन्दर वादशाहने भी फोशनकेा अपनी ओर मिलानेके लिए उसके पास सेंट भेजी थी | जो वकील वह मेंट लेकर गये थे उनसे फिर उस देशभक्तने यही कहा-रआप लोग अपने महाराजसे जाकर कहिए कि यह मेंट मुझे नहीं चाहिए । इसे लौटा लीजिए । और उनसे यह कहिए कि आप मुझे जैसा प्रतिष्ठित और सदाचारी समभते हैं बैसा ही में अन्ततक बना रहूँ--ऐसी यदि आपकी इच्छा है तो आप कृपा करके मुझे इस प्रकारके मोहमें फेँसानेका यत्न न कीजिए । अत स्वदेशके लिए जीते गढ़ जायें । प्राचीन कालमें उत्तर अफ़िकामें कार्थज और सेरोन प्रान्‍्त बलकुल पास-पास थे । एक वार उनकी सरहदके विषयमें कुछ भकगड़ा खड़ा हुआ उसके निपटानेके लिए प्रयत्न किया गया परन्तु वह किसी तरह निपटता नहीं दिखाई दिया । तब अन्तमें उस समयकी गैँवारू समभके अलुसार दोनां पक्षोंकी सलाहसे यह निश्चित हुआ कि न दोनों श्रान्तोंके मुख्य शहरोंसे बिलकुल एक ही समय दो दो आदमी एक दूसरेके शहरकी ओर चलें और उनकी भेंट बीचमें जिस जगहपर हो उसी जगह दोने 1 श्रान्तोंकी




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