गुलामी | Gulami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. दो शब्द महात्मा जोतिराव फुले उननीसवीं सदी के एक महान क्रांतिकारी पुरुष थे. उन्हें केवल समाज सुधारक कहना ग़लत होगा. वास्तव में वे सामाजिक क्रांति के जनक उनका पूरा जीवन धर्मभेद वण्भिद जातिभेद और लिंगभेद के खिलाफ एक महान विद्रोह था. उनके विचार क्रांतिकारक थे. उनकी हर साँस में विद्रोह की आँधी छुपी हुई थी. शब्दों के आडंबर को उनके जीवन में कोई स्थान नहीं था. वे सच्चे कर्मवीर थे. सत्य की खोज ही उनके जीवन का लक्ष्य था. उनके विचार और आचार में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं था. महात्मा फुले स्त्री-शूद्वों के शोषितों-पीड़ितों के और सर्वहारा जनजातियों के मसीहा थे. उनका जन्म 1827 में एक साधारण माली परिवार में हुआ था. महाराष्ट्र में पेशवाई का अंत 1818 में. हुआ. लेकिन उसके बाद भी समाज की बागडोर ब्राह्मणों के ही हाथों में थी. धर्म और संस्कृतिकी सत्ता भट्ट-ब्राह्मणों के हाथों में ही थी. शूद अतिशूद और सभी निम्न और पिछड़ी जातियाँ अज्ञान अंधविश्वास और गरीबी की दलदल में डूब चुकी थीं. वे एक प्रकार की गुलामी के शिकार थीं. ही को भी वही हालत थी. इस प्रकार के वातावरण से जोतिराव का बचपन प्रभावित था. इस सामाजिक गुलामीका कारण क्या था? इस प्रश्नने जोतिराव को बचपनसे ही बेचैन किया था. उसने उनके मस्तिष्क में एक प्रकार की उथलपुथल मचा दी थी. पिछड़े तबके में जन्म लेने के कारण इस प्रश्न की चुभन उनके-हृदय में बचपन से ही थी. इस सामाजिक गुलामी के अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु उसका मूल कारण विद्या का अभाव ही था. अविद्या ही कई सामाजिक रोगों का मुख्य कारण है. यह चीज़ जोतिराव के ध्यान में बचपन में ही आई थी. अविद्या हर प्रकार के अनर्थ को जन्म देती है. शिक्षा का अभाव ही अंधविश्वास कुरीतियाँ गरीबी विषमता आदि समस्याओं की जड़ में होता है. इस देश में शूद्रों अतिशूद्रों और स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार क्यों नहीं दिया गया? ब्राह्मणों ने उन्हे वेदों को स्पर्श करने का और पढ़ने का अधिकार क्यों नहीं दिया ? इस वंचितता का कारण क्या था ? उन्हें अधिकार दिया गया सिर्फ उच्च वर्णों के लोगों की सेवा करने का. सिर्फ़ सेवा का दूसरा अर्थ गुलामी होता है. ब्राह्मणोंने अपने स्वार्थ को धर्मशास्त्रों में सनातन सिद्धान्तों का रुप दिया. पाप और पुण्य की कई कथाएँ उन्होंने रस




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