श्रृंगार तिलक | Shringaar Tilak

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Shringaar Tilak by कालिदास - Kalidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.... जिन बंगकें वारवैधूटि रस व ॥ तिलक दोहा ॥ फिरिके बस मांहिं ताकि दे, पंकज लोचनि दाय ! भखस सुनियत सब छोक में, विष ओषधघाविष दोय ॥१५॥ ॥ मूल इलोक ॥ या सा बाधते किमिह चन्दनचर्चेतन । यःकुम्भकारपवनोपारे पड़ लेप स्ताप्राय केवल मसों नच तापशान्त्य ॥१६॥। ॥ तिलक-सवेया ॥ मो उर अंतर जाय घसी, मदनागिनि केरि सिखावलिया सो .घघकाय रही सगरों तन, नाहक चन्दन लाव हिया । खुघारि करे निज आँधनि पंकन लपनिया सो नि ताप हरे सजनी ! वरु झोर बढावत देखलिया ॥१६॥ ॥ मूल चलोक ॥ इ्टा यासां नयन सुखमा बड़त्वाराक़नानां देंगात्यागः परमकतिभिः कष्णसारे रकारि । . : तासा मेंव स्तनयुंगजिता दन्तिन स्सान्ति सत्ता: ... प्रायों मूखः्परिनिवविधो नाशिमानं तनोति 11१७॥। ॥ तिलक-सवेया ॥ पा घूटिनके, लखिके चखकी खुखमा समुदाई ... खुछृती म्ग लोग तजे निज देसर्हि, जाइवंसे कई भागि पराईं । लि का उनके कुच कुम्म से जीते गये, गज जूथन को कछु लाज न आई खनमत्त भये विहरें नहिं सूरख, हारतट्ट असिमान दुराई ॥९७॥। हा ॥ मूल इंलोक ॥ . अपूर्बों हृद्यते विंग; कामिन्या स्तनमण्डछे




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