श्रृंगार तिलक | Shringaar Tilak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.6 MB
कुल पष्ठ :
18
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).... जिन बंगकें वारवैधूटि रस व
॥ तिलक दोहा ॥
फिरिके बस मांहिं ताकि दे, पंकज लोचनि दाय !
भखस सुनियत सब छोक में, विष ओषधघाविष दोय ॥१५॥
॥ मूल इलोक ॥
या
सा बाधते किमिह चन्दनचर्चेतन ।
यःकुम्भकारपवनोपारे पड़ लेप
स्ताप्राय केवल मसों नच तापशान्त्य ॥१६॥।
॥ तिलक-सवेया ॥
मो उर अंतर जाय घसी, मदनागिनि केरि सिखावलिया
सो .घघकाय रही सगरों तन, नाहक चन्दन लाव हिया ।
खुघारि करे निज आँधनि पंकन लपनिया
सो नि ताप हरे सजनी ! वरु झोर बढावत देखलिया ॥१६॥
॥ मूल चलोक ॥
इ्टा यासां नयन सुखमा बड़त्वाराक़नानां
देंगात्यागः परमकतिभिः कष्णसारे रकारि ।
. : तासा मेंव स्तनयुंगजिता दन्तिन स्सान्ति सत्ता:
... प्रायों मूखः्परिनिवविधो नाशिमानं तनोति 11१७॥।
॥ तिलक-सवेया ॥ पा
घूटिनके, लखिके चखकी खुखमा समुदाई
... खुछृती म्ग लोग तजे निज देसर्हि, जाइवंसे कई भागि पराईं ।
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उनके कुच कुम्म से जीते गये, गज जूथन को कछु लाज न आई
खनमत्त भये विहरें नहिं सूरख, हारतट्ट असिमान दुराई ॥९७॥।
हा ॥ मूल इंलोक ॥
. अपूर्बों हृद्यते विंग; कामिन्या स्तनमण्डछे
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