बिहारी सतसई सटीक | Bihari Satsai Satik

Bihari Satsai Satik by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.बिह्ारीसतंसई ,सट़रीक । 5 : मदकंल अक्षर ३५. गुरे १३ लघु २३ ॥- , £ पा दो: बहुके सब जिय की कहति, ठौर कठोर लखे मेने छिन औओरे छिन आओरे से, ये छबिछाके नेन ४६ यह नायिका लक्षिता सखी नायिका सो कहति है । जो नायक सो कहे तो थिरताह्ट होय ॥ संवैया ॥ देखत नाहिं' ने ठौर कुनैर रहे जिंतह। तित चाह चके हैं । शरर' घरी पल रही दीसत झुमत' श्यारस में थक्के है ॥ लाज तजे शिथिलाइ गई अपने बश. ' नाहिंन यों बहके है । देत कह्दे* जिय की सब बात बिलीचन तये छुबिछाक छुके: है ॥ ४६ ॥ थे मराल अक्षर ३४ गुरु १४ लघ २० || कर दो०'नांव सनत ही .ह्लेगयो, तन ओरे मम ओर | दबे नहीं चित चढ़े रद्यो, अबे चढ़ो है त्योर २७ ' यहद नायिका सखीसो रिसे के मिस किक स्नेह दुरावति है। ये नाव सुनेतें चित्तकी रीति अरु क्रिया औरहदी भांति मई यातैं सर खीने नीके क्रि जानी | नायिका लक्षिता सखी को बचने नायक॑ सो ||,संवैया ॥ नंबर सनेहीं भयो मर्न औरही औरे भयो तन चेतन नेरै । नेह की रीति यहै नवनागरि (५१५९३, नेंकलग निबरे न निबेरे ॥ क्यों हमते सतराय बिलोकति होत 'कंहा श्रब त्योरी 4७ भें» तररे । ऐसे किये कहि कैसे दुरै हरि प्यारेको प्रेम चब्यों चित तरें ॥४७॥। _ ''. * चल चार २७ गुरु ११ लघु ६ ॥, ननय.. बलया न रह 12 ्ै नं? ७ ० रहि मुँह फेर किहेर इत, हित समुकों चित नारिं । 1 हर ' _' -डीठिं परस उठि पीठि के;-पुलके कहेँ पुकारि 8: स्यह्द नायिका -परकीया है सखी देखत पीठि दे बेढ़ी उदुरायुने फौ रोमांच ' पीठ पै भये ते देखि सखी- कहति .नायिका,लक्षिता | ,कवित्त2॥, हितकों निरखियतु. हरषे दितू को मनु हमतों घरधोडई तनु-प्रेम की प्रतीत, को । तिन्है तू भुरावति है बात बहरावति है काह़े को दूरव॒त, कूबेली नेडू ््झि




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