हिन्दी उपन्यास शिल्प बदलते परिप्रेक्ष्य | Hindi Upanayas Badalte Pariprakshya
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.37 MB
कुल पष्ठ :
396
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. प्रेम भटनागर - Dr. Prem Bhatanaagar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).विपंय प्रवेश, हा
सीधे सागर में फेंक देना चाहंगा। श्रनर्गल कला या विधान के अन्तर्गत यह एक भारी
प्रामक शब्द है । संज्ञा के रूप में यह साधारणतया, न कम, ते भ्रघिक मात्रा में कहानी
समभा जातां है या रूप-रेखा माना जाता है। इसका क्रिप्रा रुप में प्रयोग आ्राकार या
विधि के रथ में होता है । श्रनिध्चितता से मुक्ते घृणा है । अतः में प्लाट दाव्द का सा
- चाचक रूप के लिए और क्रियावाचक के लिए रचना गद्द का प्रयोग कर रहा हूं ।'
इन झ्रालोचकों के मतानसार कथानक के श्रादि, मध्य श्रौर अन्त की कोई
निष्चित, पूर्व-नियोजित योजना की श्रावश्यकता ही नहीं है । यह भी झ्रावश्यक नहीं कि
किसी विषय को चरमोन्नत भ्रवस्था तक पहुंचाया जाए और उसके निमित्त समस्त ग्रन्त-
दंशाएं, गौण घटनाएं एवं विभिन्न भूमिकाएं क्रमपूर्वक नियोजित की जाए । वे पीठिका पर
नही, सिद्धि पर; घटना पर नहीं, पात्र या विचार पर सारा ध्यान केस्द्रित रखते है
अब तक उपत्यास-शिल्प के विचारक के सम्मख व्यवस्थित श्रौर श्रव्यवस्थित कया श्ूंखल
« की वात रही थी; किन्तु कथावस्तु वर्जित मानने वालों का सिंदान्त एकदम चकाचोथ
. उत्पन्न कर देने वाली वात है । चेतना-प्रवाहवादी शिल्पियों ने शटनाझ की वाह्यात्मकता
का विदारण ही नहीं किया, ग्रस्तज॑गत के घटकों को भी निराक्रत कर दिया हूँ । वें केवल
विचारों के परिवेश में घूमते हुए पात्रों के चारित्रिक विकास पर ही झ्पनी डवित केनि
' रखते हैं । इसी प्रकार घ्रतीकात्मक णिल्प-विधि की कपतिपय रचनाओं में वस्तु तत्व के
_ सीमित झाकार देकर स्वप्नों, संकेतों श्रौर रूपकों को प्रश्रय मिला है । 'चादनी के खण्ड!
में दिवा स्वप्नों, यथाथे स्वप्तों श्रौर संकेतों के साथ-साथ रूपकी का भा सफल नियोजन
मिलता है। किसी भी प्रधान कथा को महत्व न देकर, गौण कथाओं का तार्तम्य ब्रार एक
में से दूसरी कथा का निकास भी उपन्यास-शिट्प की वर्तमान गति विधि की आर स्पप्ट
संकेत है। घर्मदीर भारती रचित “सूरज का सातवाँ घोड़ा' इसका उदाहरण ह ! चिव-
प्रसाद मिश्र की बहती गंगा” में सचह कहानियां स्वतन्त्र रूप मे वहां है ।
प्रेमचन्द युग में ही कथा तत्त्व का ह्लास प्रारम्भ हो गया था। अमर न्द के सम-
कालीन प्रसिद्ध उपन्यासकार जैनेन्द्र ने उनकी श्रेप्ठ रचना “गोदान' पढ़ कर श्रपना मर
दिया कि इसमें ्रावव्यकता से श्रघिक विस्तार है । श्रपने एक लेख “प्रेंमचन्द का गंदा;
यदि मैं लिखता” में वे लिखते हैं--''गाँव की कथा पर जहर कुछ थोपा हुथा सा हू। वह
अनिवा् नहीं है, पस्तक की कथा के साथ एक नही है । हो सकता था कि होरी को कथा के
केन्द्र में रहने के लिये, और ऐसे कि सब प्रकाश उसी पर पड़े दुसरे व्यौरे ध्यान को खींच
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