हिन्दी उपन्यास शिल्प बदलते परिप्रेक्ष्य | Hindi Upanayas Badalte Pariprakshya

Hindi Upanayas Badalte Pariprakshya by डॉ. प्रेम भटनागर - Dr. Prem Bhatanaagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.विपंय प्रवेश, हा सीधे सागर में फेंक देना चाहंगा। श्रनर्गल कला या विधान के अन्तर्गत यह एक भारी प्रामक शब्द है । संज्ञा के रूप में यह साधारणतया, न कम, ते भ्रघिक मात्रा में कहानी समभा जातां है या रूप-रेखा माना जाता है। इसका क्रिप्रा रुप में प्रयोग आ्राकार या विधि के रथ में होता है । श्रनिध्चितता से मुक्ते घृणा है । अतः में प्लाट दाव्द का सा - चाचक रूप के लिए और क्रियावाचक के लिए रचना गद्द का प्रयोग कर रहा हूं ।' इन झ्रालोचकों के मतानसार कथानक के श्रादि, मध्य श्रौर अन्त की कोई निष्चित, पूर्व-नियोजित योजना की श्रावश्यकता ही नहीं है । यह भी झ्रावश्यक नहीं कि किसी विषय को चरमोन्नत भ्रवस्था तक पहुंचाया जाए और उसके निमित्त समस्त ग्रन्त- दंशाएं, गौण घटनाएं एवं विभिन्‍न भूमिकाएं क्रमपूर्वक नियोजित की जाए । वे पीठिका पर नही, सिद्धि पर; घटना पर नहीं, पात्र या विचार पर सारा ध्यान केस्द्रित रखते है अब तक उपत्यास-शिल्प के विचारक के सम्मख व्यवस्थित श्रौर श्रव्यवस्थित कया श्ूंखल « की वात रही थी; किन्तु कथावस्तु वर्जित मानने वालों का सिंदान्त एकदम चकाचोथ . उत्पन्न कर देने वाली वात है । चेतना-प्रवाहवादी शिल्पियों ने शटनाझ की वाह्यात्मकता का विदारण ही नहीं किया, ग्रस्तज॑गत के घटकों को भी निराक्रत कर दिया हूँ । वें केवल विचारों के परिवेश में घूमते हुए पात्रों के चारित्रिक विकास पर ही झ्पनी डवित केनि ' रखते हैं । इसी प्रकार घ्रतीकात्मक णिल्प-विधि की कपतिपय रचनाओं में वस्तु तत्व के _ सीमित झाकार देकर स्वप्नों, संकेतों श्रौर रूपकों को प्रश्रय मिला है । 'चादनी के खण्ड! में दिवा स्वप्नों, यथाथे स्वप्तों श्रौर संकेतों के साथ-साथ रूपकी का भा सफल नियोजन मिलता है। किसी भी प्रधान कथा को महत्व न देकर, गौण कथाओं का तार्तम्य ब्रार एक में से दूसरी कथा का निकास भी उपन्यास-शिट्प की वर्तमान गति विधि की आर स्पप्ट संकेत है। घर्मदीर भारती रचित “सूरज का सातवाँ घोड़ा' इसका उदाहरण ह ! चिव- प्रसाद मिश्र की बहती गंगा” में सचह कहानियां स्वतन्त्र रूप मे वहां है । प्रेमचन्द युग में ही कथा तत्त्व का ह्लास प्रारम्भ हो गया था। अमर न्द के सम- कालीन प्रसिद्ध उपन्यासकार जैनेन्द्र ने उनकी श्रेप्ठ रचना “गोदान' पढ़ कर श्रपना मर दिया कि इसमें ्रावव्यकता से श्रघिक विस्तार है । श्रपने एक लेख “प्रेंमचन्द का गंदा; यदि मैं लिखता” में वे लिखते हैं--''गाँव की कथा पर जहर कुछ थोपा हुथा सा हू। वह अनिवा् नहीं है, पस्तक की कथा के साथ एक नही है । हो सकता था कि होरी को कथा के केन्द्र में रहने के लिये, और ऐसे कि सब प्रकाश उसी पर पड़े दुसरे व्यौरे ध्यान को खींच 17. पसाफ 0 स्फिए जु०ए पाए फुटासांजथंणा सता हद घाट झाफाएँ एंण पंहा। फ्ा० पल 528, 0 पाक व का अंफ्रादि छाए सतरटा ग ह5 पट घाए्डा वेट्डुपिच्ड फरणप का फिट उुाइणा एल पी मारा एमी, भण0णात छुकाए.. है5 8 कण 1 प्5ट19 फाइशा5 प्रछ पंप साएाट 0 1९55 पि शणफ-एपॉफिएह 07 डांकफुषक, 25 2 फ्टा0 वीं. घ्राट०ा$ 10 अर 0 80 4 00 शात्रणए्पाघिटह, कद 50 1 वा. इ्095ी(एफ्राई कि) ०पार छि फिड प्रणाधा, 870 तड्सेडह छि एटा0 कक --नसात्थपस्ट उ८्लीए्ांपुए८ ही कलांएए, मी: किले 80031 एा स्टोय




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