राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला | Rajasthan Puratan Granthmala

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Rajasthan Puratan Granthmala by फतहसिंह - Fathasingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ उन दिव ॥ कि ह् मूमिका ' राजस्थान वीरों श्रीर सतियों का देश है । इसकी मिट्टी का कण-कण जीवनी-शक्ति का स्रोत है। सहस्रों श्रप्रतिम शुरवीरों के श्रोजस्वित रक्त की श्रसंख्य भावनोश्रो और श्रनगिनत सतियो के जौहर की पावन भस्म के योग से उसमे वह जीवनी-शक्ति समाई हुई है कि जिसके दर्शन मात्र से मुर्दा दिलो मे शूरत्व उत्पन्न हो जाता है । वह जीवन की सार्थकता श्रौर अ्रनोखे जीवट की एक सजीवनी है । उसमे जीवन की तिस्पूृहता, सहनशीलता, हढ़ता श्रौर कठोरता के साथ भावोद्रेंकता श्रीर मानवीय सवेदना की सुपमा आ्रोतप्रोत है । राजस्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि इसका इतिहास स्वय युद्ध- कला के विशारद मातुभक्त वीरों ने खड्ग-लेखनी की नोक से श्रपनी रक्त-मसि द्वारा चित्रित किया है। यह श्रसंख्य सती वीरांगनाओ के जौहर-यज्ञों श्रौर वीरों के मरणोत्सवो (श्रभ्ुतपुर्वे श्रौर श्रगणित नारी श्र नरमेधघो ) का इतिहास हैं। जीना हैं मरने के लिये श्रौर मरना है जीने के लिये--इस रहस्यमय जीवन-मरण विज्ञान के नित्य व्यवहार शभ्रीर प्रत्यक्ष उदाहरणों की, श्रनुभुतति राजस्थान का इतिहास है। वीरों के समान ही युग-युगो तक आत्मज्ञानोपदेश शोर पथप्रदर्शन करने वाले श्रनेको ज्ञानी-भक्त श्रौर कवि-कुसुम यहाँ प्रफुल्लित हुए हूँ, जिनकी मधुर सुवास विद्व-साहित्य मे श्रजोड़ है । ऐसे वीरों, भक्तों श्रौर कवियों का राजस्थानी साहित्य प्रत्येक दिशा में श्रागे बढा हुश्रा है । राजस्थानी साहित्य गद्य (ख्यात, वात, हकीकत, वचनिका इत्यादि) श्रीर पद्य की झनेक देलिया श्रपनी मोलिकता के लिये प्रसिद्ध हैं। इन सभी परपराश्रो में श्रनेक उत्कृष्ट कोटि की रचनाशओओ का सृजन हुश्रा है । श्रनेक विद्वानों ने इस भाषा की सम्पन्नता व साहित्य के वेशिष्टय पर श्रनुठे उद्गार प्रकट किये हैं । १. (मर) छवि 15 प्रीह पड 2. शिव शत फरलाणट 6०16. कुर्क्ुंबडपा कण पैष्टावपपाट वे 2 पटल घपाह 0 . दिए, . 105 91906 3प्ा0पट् फट ॥ध्लघपाट ५ घाह फणाते 15 पा्णाचुएनन . फ इुएवक भी0पॉत 96. पा ए८ण०प09प४0४ णिएर पड. पुण्पफ्री भी फा0वदाप फाताव, . पुषि6 साणां: ०६ घाट 1




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