श्री रामचरितमानस सचित्र सटीक मोटा टैप | Shriramcharitmans sachitra satik mota Taip

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Shriramcharitmans sachitra satik mota Taip by गोस्वामी तुलसीदास - Goswami Tulsidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्रोहरि ॥ निवेदन निवेदन श्रीरामचरितमानसका स्थान हिंदी-साहित्यमे ही नही जगतुके साहित्यमे निराला है। इसके जोडका ऐसा ही सर्वाज्धिसुन्दर उत्तम काव्यके लक्षणोंसे युक्त साहित्यके सभी रसोका आस्वादन करानेवाला काव्यकलाकी दृष्टिसे भी सर्वोच्च कोटिका तथा आदर्श गाहंस्थ्य-जीवन आदर्श राजधमे आदर्श पारिवारिक जीवन आदर्श पातिब्नत-धर्म आदर्श भ्वातृधर्मके सा ५-ताद सर्वोच्च भक्ति-ज्ञान त्याग-वैराग्य तथा सदाचारकी शिक्षा देनेवाला स्त्री-पुरुष वालक-वृद्ध- युवा--सवके लिए समान उपयोगी एव सर्वोपरि सगुण-साकार भगवानूकी आदर्श मानव-लीला तथा उनके गुण प्रभाव रहस्य और प्रेमके गहन तत्वको अत्यन्त सरल रोचक एव भोजस्वी शब्दी- में व्यक्त करनेवाला कोई दूसरा ग्रन्य हिंदी-भाषामे ही नही कदाचित्‌ ससारकी किसी भाषामे आजतक नही लिखा गया । यही कारण है कि जिस चावसे गरीव-अमीर शिक्षिंत-अशिक्षित गृहस्थ- सन्यासी स्त्री-पुरुप वालक-वृद्ध--सभी श्रेणीके लोग इस ग्रन्यरत्नको पढ़ते हैं उतने चावसे और किसी ग्रन्यको नही पढ़ते तथा भक्ति ज्ञान नीति सदाचारका जितना प्रचार जनतामें इस ग्रन्थसे हुआ है उतना कदाचितत्‌ और किसी ग्रन्थसे नही हुआ । न्न्ह जिस ग्रन्यका जगत्‌मे इतना मान हो उसके अनेकी सस्करणोका छपना तथा उसपर अनेकों टीकाओका लिखा जाना स्वाभाविक ही है । इस नियमके अनुसार श्रीरामचरितमानसके भी आजतक ड् सैकडो सस्करण छप चुके हैं । इसपर सैकडो ही टीकाएं लिखी जा चुकी हैं । हमारे गीता-पुस्तकालय £ मे रामायणसम्बन्धी सैकडो ग्रत्य भिन्न-भिन्न भापाओके आ चुके हैं । अवतक अनुमानत इसकी - लाखों प्रतियाँ छप चुकी होगी । आये दिन इसका एक-न-एक नया संस्करण देखनेको मिलता हैं और उसमे अन्य मस्करणोकी अपेक्षा कोई-न-कोई विशेषता अवश्य रहती है । इसके पाठके सम्वन्धमे भी दि यणी विह्वानोंमे वहुत मतभेद है यहाँतक कि कई स्थलोमे तो प्रत्येक चौपाईमे एक-न-एक पाठ- भिन्न-भिन्न सस्करणोमे मिलता है । जितने पाठभेद इस ग्रन्थके मिलते हैं उतने कदाचित्‌ और - प्राचीन ग्रन्थके नही मिलते । इससे भी इसकी सर्वीपरि लोकप्रियता सिद्ध होती है झा इसके अतिरिक्त रामचरितमानस एक आशीर्वादात्मक ग्रन्थ है । इसके प्रत्येक पद्य श्रद्धालु लोग मन्त्रवत्‌ आदर देते हैं और इसके पाठसे लौकिक एवं पारमा्थिक मनेक कायें करते हैं। यही नही इसका श्रद्धापुर्वक पाठ करने तथा इसमे आये हुए उपदेशोका मनन करने एव उनके अनुसार आचरण करनेसे तथा इसमे वर्णित भगवानकी मधुर चिन्तन एव कीर्तन करनेसे मोक्षरूप परम पुरुषार्थे एव उससे भी वढकर भगवत्प्रेमकी प्र - आसानीसे की जा सकती है । क्यो न हो जिस प्रन्यकी रचना गोस्वामी पा अंक्त थी नगवद्भक्तके द्वारा जिन्होंने भगवान्‌ श्रीसीतारामजीकी कृपासे उनकी दिव्य लीलाओका अनुभव करके यथार्थ रूपमे वर्णन किया हैं साक्षातु भगवान्‌ श्रीयौरीशकरजीकी आश्ञासे हुई 4 जिसपर उन्ही भगवान्‌ने सत्य शिव सुन्दस्मू लिखकर अपने हाथसे सही की उसका इस हि अलौकिक प्रभाव कोई आश्चर्यकी वात नहीं है ऐसी दशामे इस अलौकिक प्रन्यका जितना भी .._ प्रचार किया जायगा जितना अधिक पठन-पाठन एवं मनन-अनुशीलन होगा उतना ही जगत्‌का मज़ुल होगा--इसमे तनिक भी सदेह नही है। वर्तमान समयमे तो जव सर्वत्र हाहहाकार मच - ह गा न सर ली डर




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