चिकित्सा - चन्द्रोदय भाग 5 | 1008 Chikitsa-chandroday Vol-5

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 ० इसलिये मुझे मानना पड़ता है कि यद्द सब उन्हीं झनाथनाथ झसदायों के सद्दाय निरावलम्बोके झवलम्ब दीनबन्धु दयासिन्घु भक्तचत्सल जगदीश--कृष्युकी ही दयाका नतीजा है जो नेत्रहीनको सनेत्र गूँगे को चाचाल सुखेको विद्वान झटपज्ञको बहु असमथंकों समर्थ कायरको शूर निर्धनकों घनी रडको राव और फृकीरको झमीर बनानेकी सोमथ्यं रखते हैं । दमारे जिन भारतीय भाइयों और अंगरेजी-शिक्षा-प्राप्त बाबुआओको देवकीनन्दन कंसनिकन्दन गोपी वर्लभ ्रज्विद्दारी मुरारि गिरवर- घारी परम मनोहर छानन्दकन्द श्रीकृष्णुचन्द्रपर विश्वास न हो जो उन्हें महज्ञ एक ज्ञबदस्त झादमी अथवा एक शक्तिशाली पुरुषमात्र समभते दो उनके स्वेशक्तिमान जगदीश होने में सन्देदह करते हों वे झब से उनपर विश्वास ले झावें उन्दे जगदात्मा परमात्मा समभों उनकी सच्चे और साफ दिलसे भक्ति करें और दाथो-दाथ पुरस्कार लूडें। कम-से-कम मेरे ऊपर घटनेवाली घटनाओंसे तो शिक्षा लाभ करे। मैं नकटोकी तरद झपना दल बढ़ानेकी ग़रजुसे नहीं घरन छापने भाइयाके सुख शान्तिसे जीवनका बेड़ा पार करनेकी सदिच्छा से झपबीती सच्ची बाते यदाकदा कहा करता हूँ । जो शुद्ध झशुद्ध मंत्र मुके झाता है जिससे मुझे स्वयं लाभ दोता है उसे झपने भाइयोको बता देना मैं वड़ा पुरय-का्य समभकता हूँ । पाठकों मैं झापसे झपनी सच्ची और इस जीवनमें झनुभव की हुई बातें कहता हूँ। जो सरल शुद्ध और संशय-रदहित चित्तसे जगदात्मा छृष्णको जपते हैं उनकी भक्ति करते हैं उनको हर समय अपने पास समभक कर निर्भय रददते हैं झभिमानसे कोसो दुर भागते है किसी का भी निष्ट नद्दीं चादते झपने सभी कामोको उनका किया छुझा मानते हैं झपने तई कुछ भी नददीं समकते घोर संकट कालमें उनको दी पुकारते श्र उनसे सादाय्य-प्राथना करते हैं भक्तमयद्दारी छष्ण-




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