नाच्यो बहुत गोपाल | Nacchyo Bhaot Gopal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.35 MB
कुल पष्ठ :
379
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ ऊंचे टीले पर वने मन्दिर के चदूतरे से देखा तो सारी बस्ती मु श्रपनी ब्णमाला के द अ्रक्तर जैसी ही लगी | शिरोरेखा की तरह सामनेवाती गली के दाहिनी श्रोर से मैंने प्रदेश किया था । द की कंठरेखा वाली गली सुलेख में लिंवे श्रप्नर की तरह ठीक शिरोरेखा के चीच में न होकर उसके वांये सिरे पर है । चहां से करीव-करीव द के घूमावदार पेट की तरह ही नगर महापालिकां की ध्रोर से बनवाई हुई कालोनी है सामने मैदान है । झौर यह टीला जिस पर मैं इस समय खड़ा हूं वह यों समकिये कि द अक्षर की घुण्डी जेंसा ही है । इसके नाद दीसे की ढलान पर एक छोटा-सा मकान भौर उसके साथ ही बाड़े में घिरी हुई शाक-सच्कियों की एक खासी लम्बी पट्टी उस सारी मंगी बस्ती को द की दावल दे देती है । द माने दमन । प्रकृति ने मानों इस बस्ती के कपाल पर ही दमन दब्द लिख दिया है । ध्रपने घर के पिछवाड़े बसी हुई मंगी वस्ती को यो तो में बचपन से ही देखता चला झा रहा हु परन्तु सच पूछा जाय तो ग्रभी कुछ ही महीनों पहले मैंने एक विचार के रुप में उसके दर्गेन किए थे । श्रपने अव्ययत कहां की सिड़की में खड़े-खड़े सहसा इस चात पर ध्यान गया कि अपने सारे पाप्त-ड़ोस में सुपरि- चित भौर व्यावहारिक रूप से सुमम्वन्धित होते हुए भी मैं श्रपने इन पड़ोसियों के सम्बन्प मे कुछ भी नहीं जानता । वस दो-वार-छह लोगो के नाम भर ही जानता हूं । कभी-कमार उनकी बातें या लड़ाई-भमडों के दूद्य देखे हैं जवानी में दो-एक नई व्याहुली भगिनों के सलोने चेटरे भी जवन्तव दिखलाई पढ़ जानें पर मेरे मन में रस का स्पर्श दे जाते थे । उनमें एक चेहरा जो जवानी में जैन रामायण की चन्द्रनला जेसा सलोना सगता था श्रव चुड़ापे में बात्मीकि-सुलसी रामायण की मूपनणा-सा चदमसूरत हो गया है । खैर तो इसी बस्ती के घहाने मैंने धाहर की मंगी बस्तियों में इण्टरव्यू करने का प्रोग्राम बनाया 1 श्रव तक जिस बर्गे को मैंने केवल झपनी वीद्धिक सहानुमूति-मर ही दी थी उसे पहली वार निकट मे पहचानने की उट्कट इच्छा जागी । इण्टरव्यू का काम आरम्भ करने के प्राय एक सप्ताह के भीतर ही मुख अनुभव हुआ कि संस्कृति को केवल श्ाभिजात्य दृष्टि से देखना साडी में समुद्र को देखने के समान ही है । खाड़ी में जन-संस्कृति के महासागर का अ्रगाघ-ग्रसीम सौंदपं मला कयोकर दिखलाई दे सकता है मैं दो दिनों से इस मंगी टोले में ग्रा रहा हूं यो तो बढें-दूढो जवानों में इृण्टरव्यू लेने के काम मैं कल ही पुरे कर चुका था मगर श्राज एक लालच श्ौर
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