भारतीय दर्शन परिचय [दूसरा खण्ड] | Bharatiya Darshan Parichay [Khand 2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 द चैशेपिक दर्शन ्ि वडन्सूनसम नाप पय लव (ख 9 द्वितीय माहिक--इसमें निम्नलिखित विपय वर्णित हैं-- (१) मन का अस्तित्व सिद्ध फरने के हेतु प्रमाण (२) वायु की तरद मन भी द्रव्य दै * ( ३) प्रत्येक शरीर में एक-एक मन है * शी (४)१ छात्मा के चिह्ठ (५) आत्मा झौर शरीर से भेद ( ६ ) 'झात्मानेकत्वचाद ( ए1005110] 01 3४७३ थ । (४) चतुर्थ अध्याय (कर प्रथम भाहिक--दसमें परमाणु का निरूपण किया गया है। सभी वचस्तुष्नों के मूल तलब हैं परसाणणु । उन्हीं के संयोग से सभी भीठिक द्रव्य यनते हैं । कारणुस्वरूप परमाणु नित्य हैं । झवयवरदित होने के कारण उनका विनाश नहीं हो सकता । कार्य-दब्य सावयव दोने के कारण नित्य हैं. (ख) द्वितीय 'सादिक-- इथ्बी आदि से बने हुए कार्ये-ट्रब्य तीन प्रकार के होते हैं-- (१) शरीर (२) इन्द्रिय, और (३) विपय । शरीर सिन्न भिन्न प्रकार के दोते हैं (५) पश्चम अध्याय (क ) प्रथम भाहिक- इसमें कमें का वन किया गया दै । मिरन-मिन्‍न प्रकार के कमें कैसे इतपनन दोते हैं, यद्द दृष्टान्तों के द्वारा दिखज्ञाया गया है । २ आतेन्द्रियावैसप्षिकर शानस्व भावोध्भावश्व मनसो लिगसू -- बे सू र२११ २ तय द्रब्यत्वनित्यत्वे बायुन। व्याख्याते-वै सू ३1२२ ३ प्रयहायौगपधाज्शानायौगपघान्वैकन--वै सू. द1२३ ४ मादापाननिमेषोस्मे पजीरवनमनोगतीन्द्रियास्तरविकारा सुखदु-येच्छादेवप्रयरनाश्वात्मनों लिंगन --दै, सृ. रे।२।४ ४ वै. लू ससइ-र७ है, , रे।१८-२१ ७ सदकारणवर्नित्यमू-वै सू, ४1१1३ रू तत्र शरीर दिविपं वोनिनमयोनिजच-- मैं, रू, 'डा२1४. इवेन सन शाशाट-ेप




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