भारतीय दर्शन परिचय [दूसरा खण्ड] | Bharatiya Darshan Parichay [Khand 2]
श्रेणी : भारत / India, दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.34 MB
कुल पष्ठ :
189
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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द चैशेपिक दर्शन ्ि
वडन्सूनसम नाप पय लव
(ख 9 द्वितीय माहिक--इसमें निम्नलिखित विपय वर्णित हैं--
(१) मन का अस्तित्व सिद्ध फरने के हेतु प्रमाण
(२) वायु की तरद मन भी द्रव्य दै *
( ३) प्रत्येक शरीर में एक-एक मन है * शी
(४)१ छात्मा के चिह्ठ
(५) आत्मा झौर शरीर से भेद
( ६ ) 'झात्मानेकत्वचाद ( ए1005110] 01 3४७३ थ ।
(४) चतुर्थ अध्याय
(कर प्रथम भाहिक--दसमें परमाणु का निरूपण किया गया है। सभी वचस्तुष्नों के
मूल तलब हैं परसाणणु । उन्हीं के संयोग से सभी भीठिक द्रव्य यनते हैं । कारणुस्वरूप परमाणु
नित्य हैं । झवयवरदित होने के कारण उनका विनाश नहीं हो सकता । कार्य-दब्य सावयव
दोने के कारण नित्य हैं.
(ख) द्वितीय 'सादिक-- इथ्बी आदि से बने हुए कार्ये-ट्रब्य तीन प्रकार के होते हैं--
(१) शरीर (२) इन्द्रिय, और (३) विपय । शरीर सिन्न भिन्न प्रकार के दोते हैं
(५) पश्चम अध्याय
(क ) प्रथम भाहिक- इसमें कमें का वन किया गया दै । मिरन-मिन्न प्रकार के कमें
कैसे इतपनन दोते हैं, यद्द दृष्टान्तों के द्वारा दिखज्ञाया गया है ।
२ आतेन्द्रियावैसप्षिकर शानस्व भावोध्भावश्व मनसो लिगसू -- बे सू र२११
२ तय द्रब्यत्वनित्यत्वे बायुन। व्याख्याते-वै सू ३1२२
३ प्रयहायौगपधाज्शानायौगपघान्वैकन--वै सू. द1२३
४ मादापाननिमेषोस्मे पजीरवनमनोगतीन्द्रियास्तरविकारा सुखदु-येच्छादेवप्रयरनाश्वात्मनों लिंगन --दै, सृ. रे।२।४
४ वै. लू ससइ-र७
है, , रे।१८-२१
७ सदकारणवर्नित्यमू-वै सू, ४1१1३
रू तत्र शरीर दिविपं वोनिनमयोनिजच-- मैं, रू, 'डा२1४.
इवेन सन शाशाट-ेप
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